क्या बुझने से पहले जोर से भभक रहा ‘चिराग’?

क्या बुझने से पहले जोर से भभक रहा ‘चिराग’?

Patna:कहते हैं कि कोई भी दीया या चिराग बुझने से पहले एक बार अचानक जोर से भभकता है और फिर बुझ जाता है. हाल में बिहार एनडीए के मद्देनजर जिस तरह से घटनाक्रम आगे बढ़ी हैं उससे तो यही लगता है कि लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan) जल्दी ही कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं. बुधवार को जिस तरह से एनडीए (NDA) को अटूट बताने वाले मुंगेर जिलाध्यक्ष राघवेंद्र भारती को उन्होंने अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए कुर्सी से बेदखल कर दिया. इससे ये मैसेज साफ हो रहा है कि चिराग के तेवर तल्ख हैं और वे एनडीए को अपनी अहमियत बताने में लगे हैं.

नीतीश-चिराग में तल्खी और प्रहार!

राजनीतिक हलकों ये चर्चा है कि चिराग पासवान (Chirag Paswan ) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं. बताया जा रहा है कि वर्तमान विधानसभा में एलजेपी दो विधायक हैं, लेकिन एनडीए का पार्ट होने के बावजूद राज्य सत्ता में इनकी भागीदारी नहीं है. इसके साथ ही हाल में चिराग ने की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधा. वहीं, प्रवासी मजदूरों की घर वापसी को लेकर भी चिराग ने न सिर्फ सीएम की आलोचना की बल्कि उनको पत्र लिखकर बार-बार मुश्किल में डाला.

चिराग ने उठाए थे सीएम पर सवाल

कुछ दिन पहले ही चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सीएम उम्मीदवारी पर भी सवाल खड़े करते कहा था कि वे उसी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार मानेंगे, जिसे बीजेपी कहेगी. हाल में चिराग ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चिराग ने पार्टी कार्यकर्ताओं से यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो एलजेपी को अकेले चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. जाहिर है चिराग पासवान के इस तरह के तमाम बयानों से आने वाले चुनाव से पहले एक बार फिर से कयास लगने शुरू हो गए हैं.

NDA में मांझी की एंट्री की खबरों से भड़के चिराग!

हाल में ही चिराग ने ये कहते हुए सभी को चौंका दिया था कि गठबंधन का स्वरूप बदल रहा है. इस पर तपाक से तेजस्वी यादव ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर वे एलजेपी महागठबंधन में आना चाहें तो जरूर विचार किया जाएगा. हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि चिराग की नाराजगी सीएम नीतीश की उस चाल से जिसमें जीतन राम मांझी की एक बार फिर घर वापसी की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है. इसके साथ ही श्याम रजक और अशोक चौधरी जैसे नेताओं को भी लाइमलाइट में रखकर नीतीश कुमार ये जताना चाहते हैं कि एनडीए में दलित नेताओं की कमी नहीं है.

इस बात से भी नाराज हैं चिराग पासवान

जानकारी के अनुसार युवा बिहारी चिराग पासवान ने अपनी पार्टी की अहमियत को बढ़ाने के लिए लोजपा का एक घोषणा पत्र भी तैयार किया है. चिराग ने इसे इसे लागू करवाने की मांग भी की. बताया जा रहा है कि ये घोषणा पत्र 14 अप्रैल को पटना में अम्बेडकर जयंती के दिन एक रैली में इसे जारी किया जाना था, लेकिन लॉकडाउन के चलते रैली रद्द करनी पड़ी. दरअसल चिराग पासवान मानते हैं कि नीतीश कुमार इस एजेंडा को लागू नहीं करना चाहते हैं. कहा जाता है कि एनडीए को ‘बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट’ के उनके एजेंडे का ध्यान रखे और उसे लागू किया जाए.

‘अदावत’ के कारण खतरे में गठबंधन

जाहिर है ये इन सभी घटनाक्रम से साफ है कि सीएम नीतीश और चिराग की आपसी ‘अदावत’ के कारण एनडीए गठबंधन खतरे में पड़ गया है. हालांकि माना जा रहा है कि इस समस्या को बीजेपी अपने स्तर से हल करने में लग गई है और बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव इसको लेकर काफी एक्टिव भी हैं. वे खुद रविवार (29 जून) देर शाम चिराग के घर पहुंचे और आगामी चुनाव को लेकर बातचीत की. इस बीच खबर है कि भूपेंद्र यादव ने बुधवार को सीएम नीतीश से मुलाकात की.चुनावी साल में इसे स्वाभाविक मुलाकात कहा जा रहा है पर चर्चा यही है कि चिराग और सीएम नीतीश की तल्खी को कम करने की कवायद शुरू हो गई है.

…तो ये है अहम मसला

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि दरअसल यूपीए और एनडीए दोनों खेमों में राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपनी दावेदारी पेश करने की कोशिश में हैं. यही कुछ एनडीए के भीतर भी हो रहा है . एलजेपी लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी अपनी बड़ी भूमिका चाहती है. वहीं बीजेपी भी एलजेपी को साथ रखना चाहती है. ऐसे में जेडीयू बड़ा रोड़ा है जो अब भी 2010 के फॉर्मूले के आधार पर चुनाव लड़ना चाहती है. दरअसल उस चुनाव में जेडीयू 141 और भाजपा 102 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. हालांकि इस बार एलजेपी साथ है, ऐसे में गणित सेट नहीं हो रहा है.

इस फॉर्मूले पर हो रही NDA में बात

रवि उपाध्याय कहते हैं कि हालांकि इस बार थोड़ा फॉर्मूला अलग होगा और इसके तहत जो बातें सामने आ रही हैं इसमें जेडीयू 113 और बीजेपी 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि लोजपा के खाते में 30 सीटें दिए जाने की चर्चा चल रही है. वहीं, जेडीयू को 2010 का फॉर्मूला ही सही लगता है. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि इस बार बीजेपी को बड़ा दिल दिखाना होगा. अगर एलजेपी को 30 सीटें देनी है तो जेडीयू और बीजेपी अपने अपने खाते से 15-15 सीटें दे. मतलब जेडीयू 126 और बीजेपी 87 सीटों पर लड़े.

क्यों अहम हो जाती है रामविलास पासवान की एलजेपी

बकौल रवि उपाध्याय पेंच यहीं फंसा हुआ है क्योंकि एलजेपी 40 सीटों की मांग कर रही है. उसे लगता है कि दबाव बनाने के बाद गठबंधन को बनाए रखने के लिए भाजपा और जदयू उसे इतनी सीट देने को तैयार हो सकती है. ये बात भी एक बड़ा तथ्य है कि रामविलास पासवान का चेहरा भाजपा और जदयू के लिए नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा. दरअसल पासवान के करीब चार प्रतिशत स्वजातीय मतदाता राज्य के सौ से अधिक सीटों पर सक्रिय हैं और वे आक्रामक वोटिंग (बढ़-चढ़कर मतदान) करते हैं.

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के काफी करीबी माने जाते हैं. (फाइल फोटो)

…तो ‘सेतु’ का काम करेंगे रामविलास पासवान!

रवि उपाध्याय कहते हैं कि बीजेपी-जेडीयू- एलजेपी के बीच सब विवादों के बावजूद गठबंधन बना रहेगा क्योंकि रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री हैं पीएम नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के करीबी भी हैं. साथ ही मोदी सरकार का कार्यकाल चार साल अभी बाकी है. ऐसे में चिराग किसी भी कीमत पर एनडीए छोड़ने जैसा ‘मूर्खतापूर्ण’ कदम नहीं उठाएंगे. हां इतना जरूर है कि अधिक से अधिक सीटों की दावेदारी को एक मुकाम तक पहुंचाने के लिए ये तल्खी दिखाई जा रही है. रवि उपाध्याय कहते हैं कि विवाद और गहराएगा, लेकिन अंत में रामविलास पासवान सामने आएंगे और सेतु का काम करते हुए एलजेपी को 32-35 सीटों पर राजी कर लिया जाएगा.

बुझने से पहले जोर से भभकने वाला चिराग नहीं!

रवि उपाध्याय के अनुसार जीतन राम मांझी ने जब से अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का जेडीयू में विलय से इनकार किया है तभी से उनकी ‘घर वापसी’ की उम्मीदें भी खत्म सी हो गई हैं. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार को भी मालूम है कि गठबंधन तोड़ना किसी भी सूरत में फायदेमंद नहीं रहेगा. यही नहीं बीजेपी और एलजेपी के रिश्ते फिलहाल प्रगाढ़ भी दिखते हैं. ऐसे में लगता यही है कि ‘एनडीए का ये चिराग’ जोर से भभक तो रहा है, लेकिन ये बुझने से पहले वाला चिराग नहीं है, बल्कि ‘राजनीति का चिराग’ है, जो फायदे का सौदा होते ही फिर से एनडीए के लिए प्रकाश फैलाने का काम करेगा.

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