Patna: चीन छोड़ने वाली कंपनियों को लुभाने की भारत की रणनीति काम करती दिख रही है। सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर ऐपल तक के लिए काम करने वाली कंपनियों ने भारत में निवेश करने की इच्छा जताई है। केंद्र की मोदी सरकार ने मार्च में ही इलेक्टॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में कुछ इन्सेंटिव्स का ऐलान किया था। अब तक करीब दो दर्जन कंपनियों ने भारत में मोबाइल फोन की फैक्ट्रियां स्थापित करने की इच्छा जताई है। ये कंपनियां भारत में 1.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 11,200 करोड़ रुपये का निवेश कर सकती हैं। सैमसंग के अलावा फॉक्सकॉन, विस्ट्रॉन, पेगाट्रॉन जैसी मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों ने भारत में फैक्ट्री स्थापित करने की इच्छा जताई है।
अब सरकार इसी रणनीति को फार्मा, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग के सेक्टर में अमल में लाने पर विचार कर रही है। हालांकि चीन और अमेरिका में व्यापारिक तनाव और कोरोना संकट का फायदा सिर्फ भारत को ही नहीं मिला है। अब भी वियतनाम इस रेस में सबसे आगे है, जबकि कम्बोडिया, म्यांमार, बांग्लादेश और थाईलैंड जैसे देशों में भी कंपनियां बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं। स्टैंडर्ड चार्टर्ड के एक सर्वे में यह बात सामने आई है। डोएचे बैंक में चीफ इंडिया इकॉनमिस्ट कौशिक दास ने कहा, ‘भारत के पास सप्लाई चेन में निवेश के जरिए मीडियम टर्म में लाभ उठाने का यह अहम मौका है।’
दरअसल सरकार को इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग से सबसे ज्यादा उम्मीद है। सरकार को उम्मीद है कि इस सेक्टर में अगले 5 सालों में 153 अरब डॉलर के प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग हो सकती है। इसके अलावा डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तौर पर इस सेक्टर में 10 लाख नौकरियों के अवसर पैदा हो सकते हैं। यही नहीं सरकार को उम्मीद है कि अगले 5 सालों में इस सेक्टर में 55 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश आ सकता है। दरअसल सरकार का टारगेट यह है कि अगले 5 सालों में दुनिया भर में स्मार्टफोन्स के उत्पादन में 10 फीसदी हिस्सेदारी भारत की हो। फिलहाल इसका सबसे बड़ा हिस्सेदार चीन है, जो दुनिया में मैन्युफैक्चरिंग के हब के तौर पर विख्यात है।
मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत मोदी सरकार मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में जुटी है। फिलहाल इस सेक्टर का भारत की अर्थव्यवस्था में 15 पर्सेंट योगदान है, जिसे बढ़ाकर सरकार 25 फीसदी तक पहुंचाने पर विचार कर रही है। मोदी सरकार पहले ही कंपनियों पर टैक्स को कम कर चुकी है ताकि ज्यादा से ज्यादा नए निवेश को आकर्षित किया जा सके।