Patna: चुनाव आयोग ने बीते छह मई को बिहार में विधान परिषद की खाली हुए 9 सीटों के लिए चुनाव की घोषणा कर दी है. तो वहीं आयोग की घोषणा के मुताबिक इन खाली 9 सीटों के लिए 6 जुलाई को चुनाव होंगे. उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के कारण चुनाव आयोग ने विधान परिषद की खाली सीटों के लिए चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया था.
चुनाव आयोग के घोषणा के मुताबिक जिन विधान परिषद के नौ सदस्यों का कार्यकाल 6 मई को खत्म हुआ था उनमें नीतीश सरकार में जेडीयू कोटे के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी समेत जेडीयू कोटे से विधान परिषद सदस्य और विधानपरिषद के सभापति हारून रशीद हैं. इसके अलावा पूर्व मंत्री पीके शाही, सतीश कुमार, हीरा प्रसाद बिंद और सोनेलाल मेहता की सीट भी खाली हो गई है. ये सभी जेडीयू के नेता विधानसभा कोटे से विधानपरिषद के सदस्य रहे हैं. वहीं, बीजेपी की तरफ से पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी संजय प्रकाश, राधा मोहन शर्मा और कृष्ण कुमार सिंह की सीट खाली हुई है.
अशोक चौधरी, कृषण कुमार सिंह, प्रशांत कुमार शाही, संजय प्रकाश, सतीश कुमार, राधा मोहन शर्मा, सोनेलाल मेहता, मो. हारून रशिद, हीरा प्रसाद बिंद
ये है चुनाव आयोग की ओर से जारी नोटिफिकेशन-
नोटिफिकेशन जारी- 18 जून,
नोमिनेशन फाइल करने की आखिरी तारीख- 25 जून
स्क्रूटिनी -26 जून
चुनाव की तारीख 6 जुलाई(9 बजे से 4 बजे तक)
मतगणना की तारीख-6 जुलाई
बिहार विधान परिषद के 10 सदस्यों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त हो गया था. सभी सदस्य मनोनयन कोटे से थे. बिहार विधान परिषद के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब कुल संख्या में एक तिहाई से अधिक सीटें खाली हो गईं. 75 सदस्यीय इस सदन में कुल 29 सदस्यों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त हो गया. 23 मई को जिन सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हुआ, उसमें रामलषण राम रमण, राणा गंगेश्वर सिंह, जावेद इकबाल अंसारी, शिवप्रसन्न यादव, संजय कुमार सिंह उर्फ गांधीजी, रामवचन राय, ललन सर्राफ, रणबीर नंदन, विजय कुमार मिश्रा औऱ रामचन्द्र भारती शामिल हैं.
विधान परिषद में श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल में पहली बार 1958-59 में विधान परिषद बिना सभापति और उप सभापति के हुआ था. इसके बाद 1970 और 80 के दशक में भी ऐसा हो चुका है. चूंकि सभापति के नहीं होने से कोई संवैधानिक संकट नहीं है, इसलिए किसी को इसका प्रभार नही दिया जाता. उधर, सरकार में शामिल दो मंत्री नीरज कुमार और अशोक चौधरी भी सदन के सदस्य के बगैर ही सरकार में शामिल हैं. हालांकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी सदन का सदस्य रहे बगैर भी 6 महीने तक मंत्री रहा जा सकता है. इस कारण इन दोनों मंत्रियों पर कोई संकट नहीं है.