Desk: पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) ने बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) उनका उपयोग तीर की तरह कर उनके जरिए कई निशाने साधने और संदेश देने की कोशिश कर रही है। सबसे बड़ा संदेश नेताओं व कार्यकर्ताओं को दिया गया है: वे धैर्य से रहें तो पार्टी उनका ख्याल जरूर रखेगी। करीब सात साल से सदन से निर्वासित चल रहे शाहनवाज को विधान परिषद में भेज कर बीजेपी ने उनके धैर्य और स्थिर चित का भी सम्मान किया है। इस दौर में बिहार बीजेपी से कई मुस्लिम नेता जुड़े। पद न मिलने पर अलग हो गए या निष्क्रिय बने हुए हैं।
ओवैसी की काट बनेंगे शहनवाज
2020 के विधानसभा चुनाव में एआइएमआइएम सुप्रीमो असद्दुदीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने मुस्लिम वोटों का समीकरण बिगाड़ दिया। ये शाहनवाज ही हैं, जिनकी लोकसभा (Lok Sabha) में जीत से यह मिथ टूटा था कि मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं देते हैं। 1999 में शाहनवाज हुसैन इसी किशनगंज से बीजेपी उम्मीदवार की हैसियत से जीते थे। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार के बाद से किशनगंज लोकसभा से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का खाता नहीं खुला। हालांकि, शाहनवाज भागलपुर से दो बार सांसद रहे। धारणा है कि सीमांचल में शाहनवाज बहुत हद तक बीजेपी या एनडीए के प्रति मुसलमानों की नाराजगी कम करेंगे। यह बीजेपी के अलावा उसकी सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के लिए भी लाभकारी होगा। वे खुद सुपौल के हैं, जो सीमांचल से जुड़ा इलाका है।
बिहार कैबिनेट में मुस्लिम चेहरा
यह पहला मौका है, जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की कैबिनेट में कोई मुस्लिम चेहरा (Muslim Face) नहीं है। जेडीयू ने मुस्लिम समुदाय के 11 उम्मीदवार बनाए थे, लेकिन किसी की जीत नहीं हुई। जेडीयू विधान परिषद के अपने किसी मुस्लिम सदस्य को कैबिनेट में लाने पर विचार कर रहा था। उसके पास बहुजन समाज पार्टी (BSP) के इकलौते विधायक को जेडीयू में शामिल कराने का विकल्प था। इसी बीच शाहनवाज की एंट्री हो गई। माना जा रहा है कि वे कैबिनेट में शामिल होकर मुस्लिम चेहरे की कमी की भरपाई करेंगे। ऐसा होता है तो बीजेपी को दोहरा लाभ मिलेगा। उसके प्रति समुदाय विशेष का तीखापन कुछ हद तक कम हो सकता है।
महीन व मधुर, लेकिन कड़क छवि
शाहनवाज बोलचाल में निहायत महीन हैं। जोर से नहीं बोलते हैं। कटु बोलने से भी परहेज करते हैं। लेकिन किसी के दबाव में झुकने की उनकी फितरत नहीं है। बीजेपी के आम मंत्रियों पर दब्बू होने का आरोप लगता रहा है। बीजेपी के कार्यकर्ता ही कहते हैं कि उनके ज्यादा मंत्रियों का मुंह मुख्यमंत्री के सामने मुश्किल से खुलता है। शाहनवाज इस कमी को पूरा करेंगे। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के मंत्रिपरिषद में रहने का अनुभव है। वे अगर राज्य कैबिनेट में अगर शामिल होते हैं तो मुख्यमंत्री के बाद ऐसे दूसरे सदस्य होंगे, जिन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में काम करने का अवसर मिला है। उनकी यह छवि बीजेपी के कार्यकर्ताओं को सुकून दे रही है, जिन्हें लगता है कि बड़ी पार्टी होने के बावजूद शासन-प्रशासन में उनके साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार होता है।
पीएम नरेंद्र मोदी की भी सहमति
अब तक यह धारणा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की नाराजगी के चलते शाहनवाज वनवास झेल रहे थे। वजह यह बताई गई थी कि गोधरा कांड की एनडीए के जिन कुछ नेताओं ने आलोचना की थी, उसमें शाहनवाज हुसैन भी थे। मोदी की नाराजगी को इस तर्क पर साबित करने की कोशिश हुई कि 2014 के बाद बीजेपी में हैसियत के लिहाज से शाहनवाज के कई जूनियर उंची कुर्सी पा गए। शाहनवाज प्रवक्ता से ऊपर नहीं बढ़ पाए। अब जबकि उन्हें सदन में भेज कर मंत्री बनाने की चर्चा हो रही है, मान लिया गया कि मोदी उनसे नाराज नहीं रह गए हैं।