Desk: बिहार की मैथिली ठाकुर आज किसी परिचय का मुहताज नहीं है। फेसबुक पर 1 करोड़ 46 लाख 881, यू ट्यूब पर 60 लाख और इंस्टाग्राम पर 26 लाख लोग जिस 20 साल की लड़की को फॉलो करते हैं, निश्चित तौर पर वह असाधारण ही होगी। गांव-घर के गीतों से यह मुकाम हासिल करने वाली मैथिली ठाकुर के गीतों की गूंज अब देश के कोने-कोने से होती हुई सरहदों की रेखाएं भी पार कर गई हैं।
करोड़ों लोगों को अपनी मधुर आवाज का दिवाना बना देने वाली मैथिली ठाकुर मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थाना क्षेत्र के ओरेन गांव की हैं। दादा शोभा सिंधु ठाकुर राम-सीता विवाह कीर्तन गाते थे। घर में शुरू से ही गीत-संगीत का माहौल था। दादा के गीतों के प्रभाव ने बचपन में ही मैथिली के जीवन का लक्ष्य तय कर दिया।
उन्हीं से प्रभावित होकर मैथिली ने बचपन में ही गाना शुरू कर दिया। पहला गाना गाया मैथिली ब्राह्मण गीत। ब्राह्मण बाबू यौ कनियो-कनियो करियो ने सहाय। 10 साल की उम्र में गांव से पापा के पास दिल्ली आ गई। म्युजिक टीचर पापा ने अपने मार्गदर्शन में मैथिली को गीत-संगीत की तमाम बारीकियां सिखाकर आगे बढ़ने का एक लक्ष्य दे दिया।
बड़े ऑडिएंश के बीच गाने की शुरुआत लिट्ल चैंप से हुई। जीवन की पहली प्रतियोगिता थी। नर्वसनेस था फिर भी टॉप-30 में आईं। फिर आगे बढ़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो बढ़ती ही गईं। 2015 में इंडियन आइडल में गईं। मैथिली लोकगीतों से शुरू हुआ सफर क्लासिकल में मंझे हुए कलाकार की श्रेणी में ला दिया। राइजिंग स्टार में फर्स्ट रनर अप रहीं।
राजीव गांधी अवार्ड, आई जिनियस यंग सिंगिंग स्टार अवार्ड सहित, वीमेंस डे पर प्रसार भारती ने सम्मानित किया। केंद्रीय महिला आयोग ने सम्मान से नवाजा। इसी तरह छोटी-सी उम्र में दर्जनों सम्मान हासिल कर मैथिली ठाकुर आज युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं।