बिहार के इन इलाकों में पानी पर तैरती नजर आ रही जिंदगानी

बिहार के इन इलाकों में पानी पर तैरती नजर आ रही जिंदगानी

Patna:बिहार में कोसी, कमला और करेह नदियों से घिरे जिले के कुशेश्वरस्थान प्रखंड के एक दर्जन से अधिक गांव वर्षों से बाढ़ की तबाही झेल रहे. यहां न तो सड़कों का निर्माण हुआ है और न ही पुल-पुलिया. नतीजा, दो लाख की आबादी वाले इस प्रखंड के 85 फीसद लोग आज भी नाव के सहारे आने-जाने को विवश हैं. अमूमन आर्थिक रूप से संपन्न हर घर में अपनी एक नाव है.

कुशेश्वरस्थान प्रखंड का गजौरी, उजवा-सिमरटोका, झाझा, बुढिय़ा सुकरासी, कोदरा, गोलमा, अरथुआ, महादेव मठ, कुंज भवन, हरनाही और उसरी सहित अन्य गांवों तक जाने के लिए पुल-पुलिया तो दूर सड़कों का भी निर्माण नहीं हुआ है. कोसी, कमला और करेह नदियों से घिरे इन गांवों तक जाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है. बरसात के मौसम में नदियों में उफान आने से स्थिति खतरनाक हो जाती है. फरवरी के बाद इन नदियों का जलस्तर कम होता है तो लोग पैदल आवागमन करते हैं.

फकदुलिया के अमर यादव, विशुनिया के राजकिशोर सदा, इटहर गांव के विमल पंडित आदि ने बताया कि कुछ साल पहले एक बार सड़क बनाई भी गई तो बाढ़ में बह गई. इसके बाद से कोई प्रयास नहीं हुआ. बाढ़ के वक्त जान जोखिम में डालकर आते-जाते हैं. नाव से नदी पार कर पंगडंडियों के सहारे कई किमी सफर तय कर गांव पहुंचते हैं. दूरी के हिसाब से नाव का किराया देना पड़ता है. सरकारी नाव पर निजी की अपेक्षा आधा किराया लगता है. कुशेश्वरस्थान से पश्चिमी तटबंध का किराया 30 रुपये है. पश्चिमी तटबंध से इटहर 10 रुपये, उसड़ी 40 और गैजोरी का 50 से 60 रुपये किराया है.

केवटगामा के मुखिया आलोक कुमार बताते हैं कि कमला बलान पश्चिमी तटबंध निर्माण के बाद कुशेश्वरस्थान दो भागों में विभाजित हो गया. तटबंध के पूर्वी हिस्से में बसे लगभग 50 हजार लोगों के आवागमन का सहारा नाव ही है. पश्चिमी हिस्से की आधी से अधिक आबादी भी नाव पर निर्भर है.

कुशेश्वरस्थान बाजार में सालभर नाव बनाने का कारोबार चलता है. दर्जनों परिवार इसी पेशे से जुड़े हैं. नाव बनाने वाले विद्यानंद शर्मा, मनोज शर्मा और सुनील शर्मा ने बताया कि आर्थिक रूप से संपन्न लोग पसंद की नाव बनवाते हैं. नाव बनाने में ज्यादातर आम व जामुन की लकड़ी का उपयोग होता है. एक नाव बनाने में 20 से 22 हजार लागत आती है. कुछ लोग शीशम की लकड़ी की नाव पसंद करते हैं. इसपर करीब 40-50 हजार लागत आती है. कई लोग नाव में मोटर भी लगवाते हैं. एक वर्ष में करीब 50 नावों का ऑर्डर मिल जाता है.

जिला प्रशासन ने इन इलाकों में नावों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है, ताकि दुर्घटना के बाद उसके मालिक की पहचान की जा सके. अब तक जिले में 613 नावों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है. 20 से 25 जून तक अंचलवार नावों के रजिस्ट्रेशन को लेकर शिविर लगेगा.

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