Patna: पुलिस सेवा में रहते हुए 64 अपराधियों का एनकाउंटर करने वाले रिटायर डीएसपी के चंद्रा की खुदकुशी के मामले में पड़ोसी व बैंक के रिटायर अधिकारी संतोष सिन्हा के खिलाफ बेऊर थाने में एफआईआर दर्ज करा दी गई है.
सुसाइड नोट में प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए उकसाने का जो आरोप डीएसपी ने पड़ोसी पर लगाया था, उसे ही आधार बनाकर मृतक डीएसपी के पुत्र निश्चय वशिष्ठ की ओर से बेऊर थाने में केस दर्ज कराया गया. बेऊर थाना प्रभारी का यह भी कहना है कि आत्महत्या से पहले रिटायर डीएसपी ने प्रताड़ना आदि के बारे में पड़ोसी के बारे में कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई थी लेकिन एक सुसाइड नोट में डीएसपी ने खुद इस बात का जिक्र किया है कि पड़ोसी की प्रताड़ना से वह बेहद अवसाद में थे. पिछले 16 वर्षों से डिप्रेशन में रहने के कारण एक रात भी सोया नहीं था. इसलिए खुदकुशी करना मजबूरी हो गया है.
रिटायर डीएसपी की निगम ने नहीं सुनी गुहार
रिटायर डीएसपी की गुहार आखिरकार नगर निगम ने भी नहीं सुनी थी. बेऊर थाना प्रभारी फूलदेव चौधरी ने बताया कि सुसाइड नोट में डीएसपी की ओर से नगर निगम को भी दोषी बताया गया है. डीएसपी ने सुसाइड नोट में साफ लिखा है घर के पास पड़ोसी द्वारा सड़क पर राबिश गिरवा कर रोलर चलवा दिया है. आसपास जलजमाव हैं, जिससे उन्हें डर लगता है. बरसात में हाल बुरा होगा लेकिन इन शिकायतों की अनदेखी नगर निगम ने की. डीएसपी द्वारा की गई खुदकुशी का यह भी एक अहम पहलू रहा है. बेऊर थाना प्रभारी ने बताया कि निगम के खिलाफ इन आरोपों की भी जांच की जाएगी.
मोकामा में कई एनकाउंटर से आए थे सुर्खियों में
सेवानिवृत्त डीएसपी के. चंद्रा के आत्महत्या की खबर ने मोकामावासियों को सन् 2000 के उन दिनों की याद दिला दी, जब मोकामा में आए दिन गोलियां तड़तड़ाती थीं. उनका मोकामा में रहा डेढ़ साल का कार्यकाल उनके पेशेवर जीवन की बड़ी उपलब्धि बनी. उस दौर में मोकामा में अपराधियों और पुलिस के बीच एनकाउंटर की कई घटनाओं ने चंद्रा को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का तमगा दिया. मोकामावासियों के लिए चंद्रा के आत्महत्या की खबर आश्चर्य की भांति रही. जो इंस्पेक्टर अपने हाथों में एके 47 लहराते हुए दुर्दांत अपराधियों से आमने-सामने की मुठभेड़ करता था, वह अपर्नी ंजदगी की लड़ाई हार जाएगा, सहसा लोगों को विश्वास नहीं होता है.
सन् 1990 और 2000 के शुरुआती समय में मोकामा में अपराधियों के आपसी गैंगवार में हर सप्ताह हत्या होने से आम लोगों में दहशत का माहौल रहता था. वर्चस्व की लड़ाई में पुलिस वाले भी कई बार गोलियों के शिकार बने. दहशत के इसी दौर में 1 अक्टूबर 2002 को मोकामा थाने का प्रभार संभाला कृष्ण चंद्रा ने. कमान संभालते ही मोकामा का रूप बदल गया. जहां अब तक अपराधियों के गिरोहों के बीच वर्चस्व को लेकर गोलियां चलती थी वहीं अब एक ओर से पुलिस ने भी कई कुख्यात बदमाशों पर सीधी दबिश बनानी शुरू कर दी. चंद्रा के नेतृत्व में अब पुलिस का इकबाल बुलंद होने लगा था.
विवादों से भी रहा है नाता
मोकामा के काफी लोगों का मानना है कि चंद्रा ने तब जिस प्रकार की पुलिस सख्ती दिखाई वह पीपुल फ्रेंडली पुर्लिंसग नहीं थी. ऐसे ही एक विवाद में चंद्रा के खिलाफ मोकामा के डॉक्टर रंजीत कुमार ने कोर्ट में मामला दर्ज कराया था और बाद में जीत हासिल की थी.
नागा सिंह और नाटा सिंह के खिलाफ लड़ी थी ‘जंग’
नागा सिंह और नाटा सिंह जैसे वांछितों के गिरोह सहित कई अन्य नामी गिरामी बाहुबलियों के खिलाफ मानो चंद्रा ने सीधी जंग छेड़ दी. उनके कार्यकाल में मोकामा थाने में हत्या के 25 मामले दर्ज हुए. इसमें गैंगवार में हत्या और एनकाउंटर में हुई मौत के करीब तीन दर्जन मामले रहे. वहीं एके 47, एसएलआर और पिस्टल जैसे अत्याधुनिक हथियार भी जब्त किए गए थे.
कुख्यात नाटा सिंह का एनकाउंटर रहा था खास
सन् 1980 के दशक से ही मोकामा में रमेश सिंह उर्फ नाटा सिंह एक दुर्दांत रंगदार माना जाता था. चंद्रा के कमान संभालने के बाद नाटा का पुलिस से भी आमना सामना हुआ और ऐसे ही एक मुठभेड़ में चंद्रा के नेतृत्व वाली पुलिस टीम ने नार्टा ंसह को एनकाउंटर में मार गिराया. चंद्रा के लिए मोकामा में यह एनकाउंटर बेहद खास रहा.
नागा सिंह को पकड़ नहीं पाने का रहा मलाल
चंद्रा के समय में बिहार में नागा सिंह आतंक का दूसरा नाम बन चुका था. 2002 से 2004 के बीच चंद्रा का सर्वाधिक बार नागा सिंह से मुठभेड़ हुआ, लेकिन हर बार नागा बच निकलने में कामयाब रहा. इस दौरान पुलिस की गोलियों से नागा सिंह के करीब डेढ़ दर्जन साथी ढेर हुए. अप्रैल 2004 में जब चंद्रा का तबादला हुआ तब उन्होंने कहा था कि नागा सिंह को न पकड़ पाने का अफसोस रहेगा.