Patna: 1967 के पहले उत्तर भारत के कई राज्यों में विरोध में बही हवा ने कांग्रेस (Congress) को कमजोर कर दिया. नतीजा बिहार सहित कई राज्यों में संविद (संयुक्त विधायक दल ) सरकार बनी. तब परिस्थितियां ऐसी बनीं कि अपनी पार्टी के एकमात्र विधायक होने के बावजूद महामाया प्रसाद सिन्हा (Mahamaya Prad Sinha) मुख्यमंत्री (CM) बन गए. वर्षों बाद कुछ ऐसी ही घटना पड़ोसी राज्य झारखंड (Jharkhand) में हुई, जहां निर्दलीय मधु कोड़ा (Madhu Koda) को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई.
कांग्रेस को राज्यपाल ने नहीं किया आमंत्रित
‘बनते बिहार का साक्षी’ नामक अपनी आत्मकथा में पूर्व मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही ने इस घटना का रोचक वृतांत दिया है. वे लिखते हैं कि 1967 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के केवल 129 विधायक ही जीत सके. कांग्रेस विधायक दल के नेता का चुनाव हुआ. इसमें महेश प्रसाद सिंह (Mahesh Prasad Singh) ने एक वोट अधिक लाकर विनोदानंद झा (Vinodanand Jha) को पराजित कर दिया. इसके बावजूद मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और सरकार बनाने के लिए तत्कालीन राज्यपाल ने उन्हें आमंत्रित नहीं किया.
32 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ने की दी धमकी
विधानसभा में सबसे बड़ा दल होने के नाते कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दरअसल, कांग्रेस के ही दो दिग्गजों ने तत्कालीन राज्यपाल अनंत शयनम आयंगर पर यह दबाव बनाया कि अगर महेश बाबू को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया तो हमलोग 32 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ देंगे. बताया जाता है कि इस आपसी कलह के कारण कांग्रेस विधायक दल के नेता को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल ने नहीं बुलाया.
महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बनी सरकार
इसके बाद उस समय की सभी विरोधी पार्टियां कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, जनसंघ आदि ने मिल-जुलकर संविद सरकार का गठन किया. महामाया प्रसाद सिन्हा अपनी पार्टी कृषक मजदूर प्रजा पार्टी (Krishak Mazdoor Praja Party) के अकेले विधायक के रूप में जीते थे. उन्होंने पटना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से कृष्ण बल्लभ सहाय (Krishna Ballabh Sahai) को पराजित किया था. पांच मार्च 1967 को महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बिहार में संविद सरकार बनी. इसमें कांग्रेस को छोड़ सभी दल शामिल हुए. इस तरह महामाया प्रसाद सिन्हा अपने दल के अकेले विधायक होने के बावजूद मुख्यमंत्री चुन लिए गए.
…और एक साल भी नहीं रह सके मुख्यमंत्री
पुराने लोग बताते हैं कि तब अन्य सभी पार्टियों के विधायक और नेता किसी भी पार्टी के व्यक्ति को अपना नेता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे. महामाया बाबू के नाम पर सबकी सहमति बन गई, क्योंकि उन्होंने कृष्ण बल्लभ सहाय को हराया था. हालांकि, महामाया बाबू की सरकार एक साल भी नहीं चल सकी. वे 28 जनवरी 1968 तक मुख्यमंत्री रहे.