Patna:राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने कभी कहा था- जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू। बिहार की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए अपने अंदाज में कही लालू की ये बात अब पुरानी होती दिख रही है। सवाल यह उठ रहा है कि समोसे में आलू तो पहले की तरह ही है, लेकिन बिहार की राजनीति से पहले क्या आरजेडी से ही लालू युग (Lalu Era) के अंत की आहट आने लगी है? आरजेडी आगामी विधानसभा चुनाव में केवल तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) को आगे कर रहा है। जिस पार्टी को लालू ने सींच व पाल-पोस कर बड़ा किया, उसके होर्डिंग्स-पाेस्टरों से ही वे गायब कर दिए गए हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या तेजस्वी यादव पिता लालू यादव की छवि से पीछा छुड़ाना चाहते हैं?
तेजस्वी को लालू स्टाइल राजनीति से लोकसभा चुनाव में झटका
गत लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने खुद को बिहार के सक्षम नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया। चुनाव से कुछ महीने पहले तक वे आरजेडी को समाज के सभी वर्गों की पार्टी बताते रहे, लेकिन ठीक चुनाव के पहले सवर्ण आरक्षण (Upper Caste Reservation) का विरोध कर लालू की राह पर चल पड़े। तेजस्वी ने चुनाव में भी अत्यंत पिछड़ा वर्ग, पिछड़ा वर्ग, दलितों और मुसलमानों को भागीदारी देने की बात कही, लेकिन सवर्णों को दरकिनार कर दिया। आगे चुनाव के नतीजे तेजस्वी के इस फॉर्मूले को बड़ा झटका दे गए। हार का एक कारण लालू स्टाइल में राजनीति (Lalu Style Politics) को भी बताया गया।
भूल सुधार करते हुए सवर्ण बिरादरी पर दिया ध्यान
बताया जाता है कि इसके बाद तेजस्वी यादव ने भूल सुधार करते हुए सवर्ण बिरादरी पर ध्यान दिया। जगदानंद सिंह को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कोशिश यह की गई कि तेजस्वी पर जाति की राजनीति का ठप्पा न लगे। यह लालू की मुस्लिम-यादव समीकरण (MY Equation) के सहारे की राजनीति से हटकर बड़ा कदम था।
एमवाइ की राजनीति से हटना तेजस्वी की मजबूरी
दरअसल, लालू की मुस्लिम-यादव गठजोड़ (MY Equation) की राजनीति से हटने का यह कदम तेजस्वी की मजबूरी भी रही। उनके इस वोट बैंक में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जनता दल यूनाइटेड, (JDU), असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की एआइएमआइएम (AIMIM) और कई छोटे दलों ने स्थानीय आधार पर सेंध लगा दिया है। वोटों के इस विभाजन के कारण अब तेजस्वी को सामने समाज के सभी वर्गों का साथ जरूरी हो गया है।
तेजस्वी का चेहरा सामने रख आरजेडी बता रहा बिहार का भविष्य
बात चुनावी होर्डिंग्स व पोस्टरों की करें तो लालू प्रसाद यादव का चेहरा आते ही लड़ाई नीतीश बनाम लालू (Nitish Vs Lalu) हो जाती है। ऐसी स्थिति में सत्ता पक्ष को लालू-राबड़ी राज (Lalu-Rabri Raj) को जंगल राज (Jungle Raj) बताने में आसानी हो जाती है। अब केवल तेजस्वी यादव का चेहरा सामने रख कर आरजेडी उन्हें बिहार का भविष्य बता रहा है। आगे की सोच के साथ चलने की इस रणनीति के साथ लालू-राबड़ी के 15 साल के दौर के दाग भी पीछे छूटते नजर आते हैं।
तेजस्वी नेता पर लालू की विचारधारा पर चल रही पार्टी
हालांकि, पोस्टरों पर केवल तेजस्वी की तस्वीर को लकर हमलावर भारतीय जनता पार्टी (BJP) इसे निजी महत्वकांक्षा बता रही है। वहीं, आरजेडी के मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि तेजस्वी सेनापति हैं इसलिए उनकी तस्वीर सामने रखी जा रही है। पार्टी तो लालू प्रसाद यादव की विचारधारा से चल ही रही है। कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर कहते हैं कि मुद्दा आरजेडी के पोस्टर से बड़े नेताओं की तस्वीर गायब होना नहीं है, मुद्दा नीतीश कुमार के 15 साल का शासन है, जिसमें कृषि व उद्योग-धंधे चौपट चौपट हो गए तो अपराध बढ़े।
हाशिए पर जाने के पहले होर्डिंग्स से गायब होते रहे नेता
एक बात और गौरतलब है कि तमाम बड़े नेता पहले होर्डिंग्स व पोस्टरों से गायब हुए, फिर धीर-धीरे राजनीति के हाशिए पर चले गए। जेडीयू में जॉर्ज फर्नांडीस तो बीजेपी में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे उदाहरण सामने हैं। पार्टी इनकार करती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या आरजेडी में वही इतिहास लालू प्रसाद यादव के साथ दोहराया जा रहा है?