बांका की राजनीति के भीष्म पितामह महज 35 हजार खर्च कर बन गए थे सांसद, तीन बार विधायक भी रहे

बांका की राजनीति के भीष्म पितामह महज 35 हजार खर्च कर बन गए थे सांसद, तीन बार विधायक भी रहे

Patna: बिहार विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा सदस्य के साथ राज्य सरकार में दो बार मंत्री रहने वाले बांका की राजनीति के भीष्म पितामह जनार्दन यादव कहते हैं कि अब ईमानदार कार्यकर्ता के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो गया है। कोई राजनीति में समाजसेवा के उद्देश्य आता भी नहीं है। बल्कि कॉर्पोरेट सेक्टर की तरह बड़ी पूंजी निवेश कर बड़ा मुनाफा कमाना उनका उद्देश्य रह गया है। वे बताते हैं कि वे छह बार विधानसभा चुनाव लड़े और तीन बार जीते भी।

लेकिन किसी विधानसभा चुनाव में अपना एक रूपया खर्च नहीं किया। चुनाव खर्च के नाम पर जीप का पेट्रोल, साइकिल का किराया और कार्यकर्ता का भोजन होता था। इसका सारा खर्च पार्टी कार्यकर्ता ही उठाता था। जिस गांव में प्रचार दल ठहरा, उस गांव में भोजन की व्यवस्था गांव में उनके किसान कार्यकर्ता करते थे। अमरपुर से दो चुनाव जीतने में उन्होंने कभी एक रूपया अपना खर्च नहीं किया। 1967 के पहले चुनाव के वक्त ही उन्होंने पांच हजार रूपये में एक जीप खरीदी थी। प्रचार का बड़ा माध्यम यही था।

इसका तेल व्यापारी वर्ग के कार्यकर्ता जुटाते थे। पहला दो चुनाव हारने पर भी कार्यकर्ता कभी साथ छोडऩे को तैयार नहीं थे। 1989 में आकर उन्हें गोड्डा लोकसभा चुनाव जीतने में पहली बार 35 हजार रूपया खर्च करना पड़ा था। वह भी इसलिए कि गोड्डा उनके लिए नया क्षेत्र था। वे बताते हैं कि अब पहले टिकट लेने में ही पार्टियां करोड़ रूपया तक वसूलती है। अब राजनीति में कोई कार्यकर्ता ही नहीं है। पैसा फेंककर कोई भी कार्यकर्ता बना सकता है। पैसा नहीं तो कितना भी ईमानदार और समाज सेवा भावना वाला कोई प्रत्याशी आगे नहीं बढ़ सकता है। अगर आपके पास पैसा नहीं है तो कोई कार्यकर्ता भी आपको नहीं मिलेगा। कार्यकर्ता अब किसी प्रत्याशी के लिए अपना खर्च नहीं करता है। मतदाता में भी खूब पैसा बांटता है। ऐसी स्थिति में सुयोग्य उम्मीदवार का चुनाव जीतना मुश्किल हो गया है। राजनीति के लिए यह त्रासद वाली स्थिति है। कोई दल या गठबंधन इससे अछूता नहीं रह गया है।

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