Patna: बिहार में कानून-व्यवस्था एक बार फिर से सवालों के घेरे में है. कोरोना वायरस के प्रारंभिक दौर में जिस तरीके से राजधानी पटना समेत विभिन्न जिलों में बढ़ते अपराध (Crime in Bihar) पर लगाम सा लगता नजर आ रहा था, वहीं अब धीरे-धीरे कानून व्यवस्था डांवाडोल दिखने लगी है. बिहार पुलिस भले ही तुलनात्मक आंकड़ों का सहारा देकर हालात को सामान्य और बेहतर बता रहा हो, लेकिन सूबे में ताबड़तोड़ हो रही हत्या, लूट और दूसरी आपराधिक वारदात से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. पटना से लेकर कैमूर, बेगूसराय, मधेपुरा, लखीसराय समेत कई जिलों में कानून व्यवस्था ध्वस्त दिख रही है. पिछले 24 घंटे में बिहार के विभिन्न इलाकों में हत्या की 10 घटनाएं हुई हैं.
बिहार पुलिस मेंस एसोसिएशन की मानें तो पुलिस इस वक्त दोहरी जिम्मेवारी में है. एक तरफ जहां वह कोरोन वारियर्स के रूप में बेहतर काम कर रही है, वहीं कानून व्यवस्था बनाए रखना भी उसकी प्राथमिकता है. एससोसिएशन के अध्यक्ष मृतुन्जय सिंह मानते हैं कि मुख्मंत्री खुद कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर रहे हैं, इसलिए हालात भी नियंत्रण में हैं. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय की मानें तो कोरोनाबंदी के कुछ दिनों को छोड़कर कानून व्यवस्था फिर से सवालों के घेरे में है. यहां व्यक्तिगत दुश्मनी में अपराध की घटनाओं के साथ ही संगठित अपराध भी होने लगे हैं.
मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का आरोप है कि बिहार सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने में कोरोनाबंदी और इसके पहले भी विफल रही है. पार्टी नेता और पूर्व मंत्री विजय प्रकाश मानते हैं कि उनके 15 साल बीते काल को जनता ने अपराध के कारण नकारा लेकिन अब बारी जदयू की है. वैसे सत्तारूढ़ जनता दल यू विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करता नजर आ रहा है. सत्तारूढ़ दल के नेता राजीव रंजन की मानें तो एनसीआरबी और बिहार में पिछले साल की घटनाओं के तुलनात्मक आंकड़े इस बात के परिचायक हैं कि सूबे की कानून व्यवस्था बेहतर है.
सवाल यह है कि अगर हालात सामान्य हैं तो बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल क्यों उठ रहे हैं. सच तो यह है की पुलिस महकमे को अपना इकबाल फिर सेवस्थापित करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ही ठोस कार्य नीति अपनानी होगी.