Patna: भारतीय रेल्वे ने बताया कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर 1 मई से चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिये उन्होंने 9 जुलाई तक 429.90 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रेलवे ने श्रमिक ट्रेनों के संचालन में लगभग 2400 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
रेलवे द्वारा दी गई इस जानकारी पर कांग्रेस ने सवाल पूछा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ल ने ट्वीट कर पूछा है कि रेल्वे ने यह पैसा किस से कमाया है? प्रवासी मजदूरों से या राज्य सरकारों से? ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे के खाते में राजस्व के रूप में सबसे ज्यादा पैसा गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु से आया है। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात से 102 करोड़, महाराष्ट्र से 85 करोड़ रुपये और तमिलनाडु से 34 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है।
किराए का भुगतान राज्यों द्वारा किया जाना चाहिए था, हालांकि प्रवासी श्रमिकों से स्थानीय प्रशासन द्वारा पैसे लेने की खबरें भी सामने आई थी। यह ट्रेनें 1 मई से चलाई गई थी। इनकी मदद से दूसरे शहरों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके राज्य और गाँव तक पहुंचाया गया था। लॉकडाउन के चलते इन मजदूरों के पास न तो काम था ना ही खाने पीने के लिए पैसे या राशन। ऐसी स्थिति में वे पैदल ही अपने-अपने गाँव जाने के लिए मजबूर थे।
मंत्रालय ने जून में कहा कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सवार प्रवासियों के लिए किराए की औसत लागत 600 रुपये थी और उन्होंने कहा कि ट्रेन को चलाने के लिए प्रति व्यक्ति लगभग 3400 रुपये खर्च हुए है। अधिकारी ने आगे कहा कि किराया राज्यों से लिया गया था। वहीं मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा “रेलवे ने श्रमिक ट्रेनों के परिचालन की लागत का 85% खर्च किया है। जब इन श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू हुआ था तब कई राजनीतिक पार्टियों ने यह आरोप लगाया था कि रेलवे इन प्रवासी मजदूरों से किराया वसूल रहा है। इसके बाद केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया था कि टिकट की 15 प्रतिशत राशि संबंधित राज्य से ली जा रही है जबकि रेलवे 85 प्रतिशत राशि वहन कर रही है।