Desk: बिहार की राजधानी पटना में इस साल के शुरुआत में 12 जनवरी को इंडिगो के स्टेशन मैनेजर रूपेश कुमार सिंह (Rupesh Singh) की हत्या के 18 दिन बीत चुके हैं, लेकिन हत्यारे पुलिस की पकड़ से अब भी बाहर हैं. रविवार को ड्यूटी पर तैनात रेलवे के दारोगा विपिन कुमार को गोली मार दी गई, लेकिन अपराधी गिरफ्त से बाहर हैं. जाहिर है बिहार की कानून व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है. सूबे के मुखिया नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की भी इस मसले को लेकर लगातार किरकिरी हो रही है. आलम ये है कि रविवार को दारोगा को गोली मारने की घटना के बाद तो उपमुख्यमंत्री रेणु देवी ने अपनी ही सरकार के लिए ‘शर्मनाक’ कह दिया. हालांकि सत्ताधारी जदयू ने इसे ‘स्लिप ऑफ टंग’ यानी जुबान फिसल गई, कहकर टालने की कोशिश की. लेकिन, हकीकत यही है कि अपराध बेलगाम है और नीतीश सरकार कठघरे में.
हालांकि 16 नवंबर 2020 को नई सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था को लेकर चार बड़ी बैठक कर चुके हैं पर नतीजा ढाक के तीन पात वाली है. कांग्रेस के नेता प्रेमचंद्र मिश्र तो कई बार कह चुके हैं कि नीतीश कुमार से गृह विभाग संभल नहीं रहा है इसलिए अब उसे छोड़ देना चाहिए. दरअसल विशेष बात यह कि नये साल में भी बिहार में अपराध की रोकथाम नहीं हो पा रही है.
आलम यह है कि विपक्ष के साथ ही सहयोगी भाजपा भी कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल उठा रही है. सिर्फ जनवरी की बड़ी घटनाओं को देखें तो नीतीश सरकार के दावों की पोल खुलती नजर आती है. साल के शुरुआत से ही कोई दिन ऐसा नहीं बीता है जिस दिन कोई न कोई बड़ी वारदात न हुई हो. आइये हम एक नजर डालते हैं चार जनवरी से लेकर 30 जनवरी तक के बड़े अपराधों पर.
जनवरी में आपराधिक वारदात
31 जनवरी- बाढ़ में ड्यूटी पर तैनात दारोगा को गोली मारी
30 जनवरी- सहरसा में फायरिंग, बेतिया में अपहरण
29 जनवरी- पटना में रंगदार दारोगा का वीडियो वायरल
28 जनवरी- औरंगाबाद में घूसखोर थानेदार गिरफ्तार
27 जनवरी- मुंगेर में बीजेपी नेता पर फायरिंग, वैशाली में एक्सिस बैंक से 47 लाख की दिनदहाड़े लूट
26 जनवरी- पूर्णिया में गैंगवार में जिंदा जलाया, भोजपुर में नाबालिग से रेप
25 जनवरी- पटना में युवक की हत्या
24 जनवरी- पटना में कृषि पदाधिकारी की हत्या, पूर्णिया में क्रिकेट संघ के नेता को गोली मारी
23 जनवरी- जेडीयू विधायक ने बीजेपी विधायक को दी धमकी
21 जनवरी- पटना में कोर्ट के मुंशी की हत्या
20 जनवरी- समस्तीपुर में दवा कारोबारी पर फायरिंग,
19 जनवरी- समस्तीपुर में दिव्यांग युवक की हत्या
17 जनवरी- सुपौल में युवक पर फायरिंग, लखीसराय में किसान पर फायरिंग, पटना में जेडीयू नेता पर गोलीबारी
16 जनवरी- वैशाली में वकील की हत्या
14 जनवरी- मुजफ्फरपुर में बैंक लूट
13 जनवरी- खगड़िया में नॉनबैंकिंग एजेंट की हत्या, आरा में विधायक सुनील पांडेय से रंगदारी मांगी, मधुबनी में दिव्यांग छात्रा से रेप,
12 जनवरी- पटना में इंडिगो मैनेजर की हत्या
10 जनवरी- सासाराम में नाबालिग से गैंगरेप, वैशाली में डबल मर्डर
7 जनवरी- मुजफ्फरपुर में छात्रा से गैंगरेप
6 जनवरी- गोपालगंज में फायरिंग
5 जनवरी- गोपालगंज में होमगार्ड की हत्या
4 जनवरी- समस्तीपुर में होटल कारोबारी पर गोलीबारी
DGP का दावा और NCRB के आंकड़े
इन आंकड़ों के बावजूद सूबे के मुखिया नीतीश कुमार से लेकर DGP एस के सिंघल तक हर कोई बस यही दावा कर रहा है कि सब कुछ बढ़िया है. उदाहरण एक बार फिर लालू-राबड़ी के शासनकाल का दिया जाता है. कुछ दिनों पहले ही मीडिया के सवालों पर भड़के नीतीश कुमार ने दावा किया कि अपराध के मामलों में बिहार देश में 23वें नंबर पर आता है. लेकिन NCRB का डेटा कहता है कि 2019 में देश भर में हुए अपराधों में से 5.2 प्रतिशत अपराध बिहार में दर्ज हुए. इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के बाद बिहार का ही नंबर आता है. यानी नीतीश कुमार का दावा झूठा साबित होता दिख रहा है. तो इस मसले को भी समझ ही लेते हैं कि आखिर लालू-राबड़ी शासनकाल से अपराध बढ़ा है या घटा है.
2004 के मुकाबले दोगुना बढ़े अपराध
बिहार पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर 2004 (लालू काल) से लेकर 2019 (नीतीश काल) तक के आपराधिक आंकड़े मौजूद हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार में लालू यादव की सरकार के आखिरी साल 2004 में अपराध के कुल 1,15,216 मामले दर्ज हुए थे, जबकि नीतीश कुमार की सरकार में 15 साल बाद 2019 में अपराध के आंकड़े घटने की बजाय (जैसा कि उनके द्वारा दावा किया जाता है) बढ़कर 2,69,096 हो गए, यानी दोगुने से भी ज्यादा.
सत्तारूढ़ दल के नेता भी उठा रहे सवाल
आंकड़े बता रहे हैं कि नीतीश सरकार में लालू यादव के शासनकाल के मुकाबले अपराध दोगुने से भी ज़्यादा बढ़े हैं लेकिन नीतीश कुमार अपनी सरकार में बेहतर कानून व्यवस्था के दावे कर रहे हैं. वहीं, सहयोगी दल भाजपा के नेता भी नीतीश कुमार से अपराध पर लगाम लगाने के लिए उतर प्रदेश वाला योगी मॉडल लागू करने की वकालत करते हैं. सांसद अजय निषाद या संजय पासवान जैसे नेता तो खुलकर कहते हैं कि अपराधी बेलगाम हैं.