Desk: डुमरांव अनुमंडल का सोवां गांव ऐसा है, जहां होली के मौके पर पीढिय़ों से पकवान तय है और वही लोग खाते-खिलाते हैं। यह खास इसलिए भी है कि आमतौर पर होली में नॉन-वेज मेनू बनाने और खिलाने की परंपरा चल पड़ी है। इसका रिवाज लगभग सभी जगहों पर है, परंतु, सोवां के उन घरों में भी होली में मांसाहार नहीं बनता, जहां अन्य दिनों में लोग मांसाहार का सेवन करते हैं।
गांव की परंपरा ऐसी है कि यहां किसी के भी घर में होली के दिन मिट-मुर्गा नहीं बनाया जाता है। केवल पुआ पकवान बनाया जाता है। गांव के लोगों का आपसी सौहार्द है कि यहां हर बिरादरी के लोग रहते हैं, लेकिन होली के दिन हर जाति-समुदाय के लोग इस परंपरा का सम्मान करते हैं। गांव में शाकाहारी होली की परंपरा कोई धार्मिक मान्यता से नहीं जुड़ी है।
सदियों से यहां पवित्र ढंग से होली पर्व मनाया जाता है। गांव के लोग बाबा भुअर नाथ की पूजा करते हैं और सात्विक होली मनाते हैं। गांव के बुजुर्ग रामाशीष पाल बताते हैं कि जब से होश संभाला है, तब से इसी परंपरा को देखते आ रहे हैं। बचपन में पिताजी भी होली के दिन अपने साथ बाबा भोलेनाथ के मंदिर में लेकर जाते थे। हालांकि, सात्विक होली की वजह तो वे नहीं बता पाए, लेकिन इतना बताया कि जो परंपरा वे लोग निभाते आ रहे हैं, उसे आगे भी निभाना है।
परदेस से आते हैं गांव होली मनाने
गांव में सात्विक होली का इतना महत्व है कि परदेश में बस चुके गांव के लोग भी होली यहीं आकर मनाने का प्रयास करते हैं। गांव के मुकेश यादव ने बताया कि दूसरे प्रदेश में नौकरीपेशा तथा व्यवसाय से जुड़े लोग पर्व के मौके पर गांव जरूर आते हैं। जहां पारंपरिक तरीके से सोहार्दपूर्ण माहौल में हंसी-खुशी होली का त्योहार मनाते हैं। सुबह में रंग-गुलाल खेलने के बाद दोपहर बाद स्नान-ध्यान से निवृत हो नए वस्त्र धारण कर भुअर नाथ के मंदिर में लोग मत्था टेकते हैं। तत्पश्चात, मंदिर में विराजमान शिवङ्क्षलग पर अबीर-गुलाल चढ़ा पूजा-अर्चना करने के बाद एक-दूसरे को गुलाल लगा होली मनाते हैं।