Patna: नीतीश कुमार का अधिकारी प्रेम बिहार में NDA सरकार पर भारी पड़ रहा है। पिछली सरकार की तरह इस बार भी नीतीश कुमार के अधिकारी विभागों में मंत्रियों पर भारी पड़ रहे हैं। लिहाज बदले तेवर की भाजपा अब इसको लेकर रौद्र रूप में आ गई है। NDA में सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी भाजपा अब नीतीश कुमार के मनचढ़े अधिकारियों को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। यही वजह है कि भाजपा आलाकमान ने भी इसपर भौंहें चढ़ा ली हैं। शुरुआती दौर में बातों के जरिये बात बनाने की कोशिश कर रही भाजपा अब एक्शन के जरिये नीतीश कुमार को बात समझाने में जुट गई है।
अरुणाचल प्रदेश में जदयू पर भाजपा का वार
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। साल 2019 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में बिहार के CM नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने 15 सीटों पर चुनाव लड़कर 7 सीटों पर कब्जा किया था। जदयू राज्य में भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की बनकर उभरी थी। भाजपा को अरुणाचल विधानसभा चुनाव में 41 सीटें मिली थीं। अब जब जदयू के 6 विधायकों को मिलाकर कुल 7 नए विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं तो भाजपा के विधायकों की कुल संख्या बढ़कर 48 हो गई है। राज्य में अब जदयू के पास एक विधायक है, जबकि NPP और कांग्रेस के पास चार-चार विधायक हैं। कुल मिलाकर यह साफ है कि अरुणाचल प्रदेश में भाजपा को किसी भी पार्टी में कोई तोड़-फोड़ करने की जरूरत नहीं थी, ऐसे में भाजपा ने अपनी ही सहयोगी जदयू के घर में सेंधमारी क्यों की? इससे भाजपा को भले ही कोई फायदा नहीं हुआ हो, लेकिन जदयू का नुकसान जरूर हुआ है, क्योंकि एक तरफ जहां अरुणाचल प्रदेश में उसका अस्तित्व खतरे में आ गया, वहीं उससे अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रीय दल का दर्जा भी छिन गया है। यानि एकतरफ जहां जदयू पश्चिम बंगाल में अकेले मैदान में उतर अपने विस्तार के लिए मशक्कत कर रही है, वहीं भाजपा ने इस तोड़-फोड़ के जरिये पूर्व में मिली उसकी सफलता को भी उसके हिस्से से छीन लिया है।
अरुणाचल प्रदेश में ताकत दिखा बिहार में दी चेतावनी
अरुणाचल प्रदेश जदयू में भाजपा ने जो तोड़-फोड़ की, उससे असल में भाजपा बिहार की राजनीति को साधने की कोशिश कर रही है। भाजपा के अंदरखाने से जो रणनीति सामने आ रही है, वह बताती है कि असल में भाजपा अरुणाचल प्रदेश के जरिये बिहार में जदयू को चेतावनी दे रही है। भाजपा का यह संकेत साफ है कि अगर बिहार में नीतीश कुमार ने सरकार चलाने का अपना अंदाज नहीं बदला तो ऐसी तोड़-फोड़ बिहार में भी हो सकती है और भाजपा के लिए यह कोई मुश्किल राह नहीं, क्योंकि नाराजगी बिहार जदयू के अंदर भी है। अब सवाल यह है कि आखिरी नीतीश की किस कार्यशैली से बीजेपी नाराज है। वह भी तब, जब खुद भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनने का ऑफर दिया था।
बिहार NDA में जिनकी वजह से है बखेड़ा
चंचल कुमार : प्रधान सचिव, मुख्यमंत्री
दीपक कुमार : मुख्य सचिव,बिहार
प्रत्यय अमृत : प्रधान सचिव ,स्वास्थ्य विभाग
आनंद किशोर : सचिव,नगर विकास विभाग
आमिर सुबहानी : गृह सचिव, बिहार
ये वे नाम हैं, जो बिहार सरकार के अंदर के बखेड़े का फिलहाल सबसे बड़ा कारण बने हुए हैं। असल में नीतीश कुमार पर इस बात के आरोप शुरू से लगते रहे हैं कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में सरकार से लेकर प्रशासनिक हलके में अधिकारियों का रसूख मंत्रियों से भी ज्यादा बढ़ गया है। नीतीश कुमार अपने मंत्रियों से कहीं ज्यादा अधिकारियों की सुनते हैं और यही वजह है कि अधिकारी विधायकों की तो दूर मंत्रियों की भी नहीं सुनते। अब यही आरोप नीतीश सरकार पार्ट 4 पर भारी पड़ता दिख रहा है। भाजपा इस बार जदयू से बड़ी पार्टी हो चली है, लिहाजा नीतीश कुमार के पिछले कार्यकालों की तरह इस बार वे इन अधिकारियों को उनकी सही जगह पर पहुंचाने में लगी है, लेकिन नीतीश के गृह विभाग अपने पास रखने की वजह से भाजपा इस मामले में अब तक कुछ नहीं कर पा रही है। दूसरी तरफ अधिकारी अब भी विभाग के मंत्रियों की बजाय मुख्यमंत्री के कहने पर ही काम कर रहे हैं। यानि भाजपा के मंत्री, अधिकारियों के आगे इस बार भी लाचार हैं। माना जा रहा है कि चंद रोज पहले अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर आये बिहार के दोनों उप मुख्यमंत्रियों ने भी इसी विषय को आलाकमान के सामने रखा था।
ये अधिकारी कई मंत्रियों पर पड़ते रहे हैं भारी
इन सभी नामों में सबसे अधिक प्रभावशाली माने जाते हैं चंचल कुमार। वे नीतीश कुमार के साथ तब से जुड़े हैं, जब नीतीश कुमार रेल मंत्री थे। चंचल कुमार नीतीश कुमार के कितने करीबी हैं, इसका इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि योजना एवं विकास विभाग में मंत्री रहे महेश्वर हजारी की एकबार अपने विभाग के सचिव रहे चंचल कुमार से कुछ अनबन हो गई थी। इसका असर यह पड़ा था कि महेश्वर हजारी को ही विभाग से हटा दिया गया था। चंचल कुमार विभाग में सचिव बने रहे और उसके बाद वे मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव बने। तब से लगातार वही उनके प्रधान सचिव रहे हैं। आमिर सुबहानी के लगातार गृह सचिव पद पर रहने को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अब भी इस पद पर बने हैं। अब तो भाजपा के नेताओं ने भी उन्हें गृह सचिव के पद से हटाने की मांग शुरू कर दी है।
भाजपा को पहले से थी इस बात की आशंका
CM के तौर पर नीतीश कुमार के अधिकारियों के प्रति रवैये को लेकर ही भाजपा इसबार गृह विभाग अपना खाते में लेना चाहती थी। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने जब पटना आए थे, तब उन्होंने खुद नीतीश कुमार से हुई मुलाकात में गृह विभाग भाजपा को देने की मांग की थी, लेकिन नीतीश कुमार नहीं माने। हालांकि अमित शाह की तरफ से इसके लिए कोशिशें देर रात तक चली थीं। अमित शाह शपथ ग्रहण समारोह खत्म होने के बाद भी देर रात तक पटना के एक होटल में बैठकर नीतीश कुमार की तरफ से गृह विभाग को लेकर सकारात्मक जवाब आने का इंतजार करते रहे थे। 16 नबंबर को तय कार्यक्रम के मुताबिक शाम 5 बजे ही केन्द्रीय गृहमंत्री को वापस दिल्ली जाना था, लेकिन वे रात करीब 11 बजे पटना से लौटे थे।