DESK: खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने को लेकर बिहार सरकार लाख दावे कर ले, लेकिन हकिकत कुछ और ही बयान करती है. खो-खो में आठ बार वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में बिहार का नेतृत्व कर चुका खिलाड़ी आज हजामत की दुकान चलाकर दो जून की रोटी जुटाने पर मजबूर है. लेकिन इसके बाद भी उसका हौसला कम नहीं हुआ है. खिलाड़ी दुकान चलाने के साथ-साथ अब अपने गांव के बच्चों को खो-खो का प्रशिक्षण दे रहा है.
सरकार के इस दावे को आईना सीतामढ़ी के रहने वाले कमलेश कुमार दिखा रहे हैं.सीतामढ़ी के परिहार प्रखंड के सुरगहिया गांव के रहने वाले कमलेश आठ बार वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में बिहार का नेतृत्व कर चुके हैं. असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक, दिल्ली, महाराष्ट्र समेत कई शहरों में उसने बड़े प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया लेकिन अपने ही बिहार में आज हजामत की दुकान चला कर गुजर-बसर करने को विवश है.
उसके मुताबिक उसने अपनी जिन्दगी खेल के नाम कर दी, लेकिन बदले में मिली तंगहाली. कमलेश का कहना है कि वे अब तक जितने भी जगह गए हैं चंदे के पैसे से गए हैं. सिस्टम से कोई भी मदद नहीं मिली. लेकिन अभी भी उम्मीद है कि कभी तो सिस्टम जगेगा और उसकी प्रतिभा का कद्र होगा. कमलेश अपने अधूरे सपने को पूरा करने के लिए गांव के बच्चों को खो-खो का प्रशिक्षण देते हैं. अब कमलेश को सिस्टम से मदद की उम्मीद है.