बाढ़ पीड़ितों का दर्द- ए बाबू, हमनी सभ का खाईं का पीं, का ले परदेस जाईं…

बाढ़ पीड़ितों का दर्द- ए बाबू, हमनी सभ का खाईं का पीं, का ले परदेस जाईं…

Patna: बिहार के सारण जिले की विभिन्न पंचायतों के कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं. पानी रोजाना बढ़ रहा है. इसी के साथ बाढ़ पीड़ितों के दर्द की चादर भी चौड़ी होती जा रही है. उनके सामने खाने-पीने से लेकर रोजमर्रा कीजरूरतों को पूरा करने तक की समस्या आ खड़ी हुई है. किसी ने बांधपर शरण लिया है तो कोई पलायन के लिए विवश है. पानी की तबाही ने ऐसा मंजर दिखाया है कि बसवा ही सुगंधी देवी अपनीव्यथा सुनाते हुए कहती हैं- एक बाबू, का खाईं, का पीं, का लेपरदेस जाईं. जान पर आफत बा तो सामान के का सोंचीं.

दरअसल बाढ़पीड़ितों के लिए एक साथ कई व्यावहारिक समस्याओं ने जन्म ले लिया है. लोग बेचैन हैं. आहत हैं. उन्हें तत्काल मसीहा और चिकित्सक दोनों की जरूरत है लेकिन वे लाचार नजर आ रहे हैं. कृषिधन व पशुधन की हानि झेलकर वे टूट-से गये हैं. सारण तटबंध परतंबू गाड़ रह रहे लोग सारण तटबंध परकई लोग रहने को विवश हैं. तरैया प्रखंड के कई गांवों के ग्रामीणअपना सब कुछ गवां कर सारण तटबंध पर आश्रय लिए हैं. तरैया की पांच पंचायतें माधोपुर, डुमरी, भटगाईं, चंचलिया और पचरौरके कई ग्रामीण सारण तटबंध पर तंबू गाड़ कर रह रहे हैं.

इनमें संग्रामपुर, अरदेवा, शामपुर जैसे गांव के लोग शामिल हैं. ग्रामीण बसमतिया देवी बताती हैं कि बांध पर शरण तो लिए हैं पर दिन में कभी बारिश और कभी तेज धूप और रात में खुले आसमान के नीचे रहने का दर्द काटना बहुत मुश्किल है. पानापुर के पृथ्वीपुर,सलेमपुर, बसहिया, बभवा आदि गांव के पीड़ित बाढ़ की विनाशलीला को बस टुकुर-टुकुर देख रहे हैं. माधोपुर पंचायत के अरदेवा-जिमदाहागंडक नदी तट पर रहने वाले संत नारद जी महाराज की कुटिया पानी मेंघिर गई है. नाव और स्ट्रीमर के सहारे वहां रहने वाले पशुधन को बाहरतो निकाला गया है लेकिन कुटिया को लेकर संकट है.

फसलों के साथ सब्जी को भी बाढ़ ने जमकर लूटा है. भिंडी, नेनुआ, तरोई, बैगन, खीरा, नेनुआ,हरी मिर्च जैसी सब्जियों ने इस बार जल समाधि ले ली. पानी में बढ़े और मिट गए. अपनी हरियाली से किसी को प्रभावित नहीं किया. सब्जी दुकानदारों के ठेले की शोभा नहीं बने. खेत ही उनकी कब्रगाह बनगए. जानवरों से बचाव को लेकर संकट ग्रामीणों ने बांधों और नहरों पर शरण तो लिया है पर वे विषैले जानवरों के प्रकोप कोलेकर भी चिंतित हैं. उनकी व्यथा अगाध है- सियार से बचें, सांप से बचें, बढ़ते पानी के प्रभाव से बचें, दूषित पेयजल से बचें,भूख संकट से बचें, संक्रामक बीमारियों से बचें- आखिर किस से बचें और किस को बचाएं- वे खुद कभी नाव पर तो कभी बांध पर.लोगों की बदहाली बढ़ती जा रही है. सड़कों पर पानी है, घरों मेंपानी है- ऐसी स्थिति में यह कुछ नहीं कर पा रहे. किसानों का यह दर्द असीमित है. उन्हें भोजन के लिए भी व्यवस्था पर आश्रित रहना है. पानी के लिए तो और भी मुश्किल है. पेयजल संकट है पर वही पानी पीने की मजबूरी है.

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