वरिष्ठ आईएएस अफसर तरुण पिथोड़े की किताब ऑपरेशन गंगा इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। इस किताब में तरूण पिथोड़े ने रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध में फंसे भारतीय बच्चों की सफल वापसी, संघर्ष, परेशानियों को खूबसूरत अंदाज में बताने का प्रयास किया है। बिहार के तीस स्टूडेंट्स यूक्रेन के जंग मे बुरे तरीके से फंस गए थे। जिसे सकुशल बिहार लाया गया था।
ऑपरेशन गंगा पुष्तक आने के बाद एक बार फिर से वह यादें ताजा हो गई है। युद्ध अभी भी जारी है। ऑपरेशन गंगा के लेखक मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं।
यूक्रेन और रूस युद्ध की शुरुआत के दौरान यूक्रेन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहें काफी भारतीय विद्यार्थियों के सुरक्षित भारत लौटने का संकट खड़ा हुआ था। युद्ध क्षेत्र के बीच से बचाव का कार्य आसान नहीं होने वाला था। विद्यार्थियों के अलग-अलग शहरों में होने, उनके निकल पाने की स्थितियों की अपुष्ट जानकारी तथा युद्ध की वजह से विमान सेवाओं के निलंबन जैसी कठिनाइयों के बीच भारत सरकार ने बच्चों को सुरक्षित वापस लाने के अपने अभियान ‘ऑपरेशन गंगा’ को शुरू किया।
बच्चों के जुबान पर आधारित बुक
इसके साथ ही इस ऑपरेशन गंगा किताब में बिहार के सैकड़ों छात्रों के रेसक्यू की भी कहानी हैं। साथ इसमें उन बच्चों के साहस का भी वर्णन किया गया है। खारकीव में फंसे एक के हिम्मती बच्चे की भी दास्तां हैं, जिसने किस तरह बमबाजी के दौरान खुद की और दूसरे प्रदेश के साथियों कों बंकर में पहुंचाने में मदद की।
किताब में इस साहसी विद्यार्थी की कहानी को लेखक ने बेहद मार्मिक ढंग से लिखा है। जिसे पढ़कर आंसू भी छलक पढ़ते हैं। यह ऑपरेशन किस प्रकार से प्लान हुआ, कैसे इसके विभिन्न चरण आरंभ हुए और इसके क्रियान्वयन में आई मुश्किलों को तरुण पिथोड़े जी ने यथासंभव विस्तार से अपनी किताब में दर्ज किया है। पुस्तक के लेखक आईएएस तरुण पिथोडे ने बिहारी बच्चे को बारे में बताते है कि काफी विसम परिस्थिति में वहां थे।
इन बच्चों को वहां से निकलने में व्यापारी,एयरलाइंस और भारतीय दूतावास के अधिकारी है। ये तमाम लोग रियर हीरो जैसे रहें।उन्होंने बताया है कि हमरा व्यवहार कैसा हो। यह बड़ा योगदान देता है। देश के अंदर हो या विदेशों में व्यवहार काफी महत्वपूर्ण होता है।
रोमानिया बॉर्डर पर फंसे थे छात्र
बिहार के समस्तीपुर जिला के दलसिंहसराय के सरदारगंज के रहने वाले कारोबारी मुजिबुल रहमान की बेटी तबस्सुम परवीन यूक्रेन के विनित्सिया मेडिकल कॉलज की प्रथम वर्ष की छात्रा। पिता और परिवार वालों से उसकी दो दिन से बात नहीं हो पा रही थी। वह साथ में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के साथ रोमानिया बॉर्डर पर आ गई थी। वहां से गंगा आपरेशन के जरीए यहां तक लाया गया।
खारखीव में काफी स्टूडेंट्स फंसे मिले
वही पटना के महेश नगर के रहने वाले महफूज आलम अक्टूबर 2021 से यूक्रेन मे रह रहें थे। खारकीव में वीएन करजिन नेशनल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई कि लिए वहां गया था। रूस ने हमला कर दिया तो महफूज अपने साथियों के साथ जान बचाकर भागे। उनके हॉस्टल के नीचे बम शेल्टर बना था। जिसमें वो अपने चचेरे भाई सफदर अली और मुजफ्फरपुर के दोस्तों विवेक ठाकुर व तसलीम के साथ छुपे रहें। महफूज के पिता मंसूर आलम सैलून चलाते थे।
विकट परिस्थिति में ते स्टूडेंट्स
आईएएस बताते हैं कि हालात काफी खराब थे। बंकर के अंदर फंसे छात्र कर्फ्यू में ढील मिलते ही चोरी-छिपे ऊपर बने फ्लैट में जाकर किसी तरह मोबाइल चार्ज कर लेते हैं। साथ ही पीने पी लेते हैं। पांच दिनों से उन-लोगों ने कुछ भी नहीं खाया है। जो सत्तू साथ लेकर गए थे वो भी खत्म हो गया है। बंकर के अंदर महफूज और उनके साथी -2 डिग्री में जमीन पर बैठ कर किसी चमत्कार के होने की उम्मीद जिंदा रखे हुए हैं।