Desk: ”नमस्ते मैम, मै सुष्मिता हूं। कराटे खिलाड़ी हूं। आपको पता है मैम…मैं उस टीम में थी, जिसने पाटलीपुत्रा यूनिवर्सिटी को ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में ओवरऑल चैंपियन बनाया था। हम तीन खिलाड़ियों की टीम ने 1 गोल्ड और एक सिल्वर जीता था।” ये कहना है उस महिला खिलाड़ी का, जिसकी वजह से बिहार की कोई यूनिवर्सिटी पहली बार नेशनल लेवल पर हुए यूनिवर्सिटी गेम्स में ओवरऑल चैंपियन बनी थी। अब सवाल यह है कि सुष्मिता को इसके बदले क्या मिला? जवाब है – बीते 155 दिनों से हो रहा इंतजार। वो भी सम्मान पाने के लिए।
2020 में नहीं हुआ खेल सम्मान समारोह
बिहार में हर साल 29 अगस्त को खेल दिवस कार्यक्रम का आयोजन होता है। इसमें राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में पदक जीतनेवाले और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों को हर साल पुरस्कार दिया जाता है। बीते साल 2020 में यह आयोजन हुआ ही नहीं। वर्चुअल तरीके से समारोह आयोजित कर महज औपचारिकता पूरी कर दी गई। यहां तक कि सम्मान समारोह के लिए मांगे गए आवेदनों की चयनित लिस्ट तक जारी नहीं की गई। लिहाजा खेल सम्मान के नाम पर विभाग को मिली करोड़ों की राशि धरी की धरी रह गई। अब खत्म होते वित्तीय वर्ष में यह राशि लैप्स होने के कगार तक पहुंच चुकी है।
गोल्ड जीतनेवाली सुष्मिता की कहानी, उसी की जुबानी
खेल सम्मान समारोह के इस किस्से को सुनने के बाद जरा गोल्ड जीतनेवाली सुष्मिता की कहानी सुनिए। सुष्मिता के परिवार में मां, दो बहनें और एक छोटा भाई है। पिता अलग रहते हैं। मां घर का खर्च उठाती हैं। एक मैडम के घर सुबह 9 से रात 9 बजे तक बेबी केयर का काम करती हैं।
सुष्मिता बताती हैं, मेरी बड़ी बहन की शादी होनेवाली है। मां ने कहा था – सम्मान समारोह से जो पैसे मिलेंगे, उससे बड़ी बहन की शादी में मदद मिल जाएगी। फिर धीरे-धीरे तुम्हारे पैसे कमा कर दे दूंगी। असल में, मुझे ट्रेनिंग के लिए पैसों की जरूरत पड़ने लगी है। पहले बाल भवन, किलकारी में ट्रेनिंग मिल जाती थी। लेकिन वहां केवल 16 साल तक के बच्चों के लिए ट्रेनिंग की सुविधा है, मैं 18 की हो गई हूं। इसलिए अब मुझे अपनी कराटे ट्रेनिंग के लिए कोई नई व्यवस्था करनी पड़ेगी। सोचा था, सम्मान समारोह से 50 हजार भी मिल जाते तो थोड़ी मुश्किल हल हो जाती, लेकिन ये हुआ ही नहीं। कहा गया – कोरोना है। अब तो सब सामान्य दिख रहा है। अब तो आयोजन हो ही सकता था। किट खरीदने के लिए भी 20 हजार रुपए मिलने थे, उसमें भी केवल 5 हजार ही मिले। इसके लिए भी ऑनलाईन आवेदन मांगा गया था। किया भी, लेकिन पूरे पैसे नहीं मिले। अब किट भी खरीद लिया है, उसका कर्जा चुकाना है। मैम…मैं इसी फिल्ड में रहना चाहती हूं। बैचलर इन फिजिकल एजुकेशन की पढ़ाई कर रही हूं लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से। मुझे वहां स्कॉलरशिप मिली है। फ्री पढ़ाई मिल रही है, लेकिन इन मुश्किलों का क्या करूं?
हर साल करीब 250 खिलाड़ियों को मिलता था सम्मान
बिहार के कला एवं संस्कृति विभाग की तरफ से 2007 से आयोजित हो रहे खेल सम्मान समारोह में हर साल करीब 250 खिलाड़यों को सम्मान दिया जाता था। इसमें अधिकतम 5 लाख की सम्मान राशि दी जाती है। इस बार 8 अगस्त 2020 को विभाग की वेबसाईट पर सम्मान समारोह के लिए खिलाड़ियों से आवेदन मांगे गए। इन आवेदनों में से चुने गए खिलाड़ियों को 29 अगस्त 2020 को सम्मानित किया जाना था। लेकिन कोरोना का हवाला देकर ना तो सम्मान समारोह हुआ, ना चुने गए आवेदकों की सूची जारी हुई।
लैप्स होने के कगार पर 3.5 करोड़ की राशि
कला, संस्कृति विभाग की लापरवाही के कारण बिहार के प्रतिभावान खिलाड़ियों के हिस्से आनेवाली करीब साढ़े तीन करोड़ की राशि लैप्स होने के कगार पर है। विभाग को आवंटित राशि का अगर इस्तेमाल नहीं होता है तो 15 मार्च तक इसे वापस ले लिया जाता है। अबतक साढ़े तीन करोड़ की राशि में से डेढ़ करोड़ खर्च नहीं होने के कारण वापस लिये जा चुके हैं। बाकी राशि भी 15 मार्च तक वापस हो जाएगी।
इस मामले पर जब कला-संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ. संजय सिन्हा से बात की गई, तो उनका कहना था कि खेल सम्मान समारोह के आयोजन के लिए कोशिश की जा रही है। लेकिन सबकुछ कोविड गाईडलाईन पर निर्भर करता है।