32 वर्ष तक आपकी पीठ पर खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं… ये कह कर दोस्त लालू यादव से विदा ले गये रघुवंश बाबू

32 वर्ष तक आपकी पीठ पर खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं… ये कह कर दोस्त लालू यादव से विदा ले गये रघुवंश बाबू

Patna: पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह दुनिया को अलविदा कह गये। जाते-जाते वह अपने दोस्त या नेता लालू प्रसाद से विदा ले गये। उन्होंने तीन दिन पहले ही राजद प्रमुख लालू प्रसाद को सादे पन्ने पर पत्र लिखकर कहा था ‘32 वर्ष तक आपकी पीठ पर खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं …’। उनके उस पत्र को पार्टी से इस्तीफा मानकर लालू प्रसाद ने भी जवाब दिया ‘…आप कहीं नहीं जा रहे, समझे’। लेकिन वह तो…

वेंटिलेटर पर जाने के पहले रघुवंश बाबू ने कई पत्र लिखे। सिर्फ इस्तीफे वाला पत्र एक डायरी के पन्ने पर था। शेष सभी लेटर हेड पर। पत्र उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी लिखा। उनसे कई मांगें की। सभी पत्र दस सितम्बर को ही लिखे गये लेकिन जारी किया गया एक दिन के अंतराल पर। 

दरअसल, रघुवंश सिंह ना सिर्फ राजद के निर्माता और मार्गदर्शक थे बल्कि पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद के भी वह बहुत करीब थे। वह हर संकट की घड़ी में लालू प्रसाद की पीठ पर सचमुच खड़े रहे। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद जब नेता पद की होड़ मची तो सभी वरीय नेताओं को उन्होंने दरकिनार कर दिया और लालू प्रसाद को नेता बना दिया। पारिवारिक उलझनों को भी सलटाने में मदद की। शायद यही वजह रही होगी कि रघुवंश बाबू राजद छोड़ने की बात सीधे तौर पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा सके और इशारों में ही सबकुछ कह गये। 

रघुवंश सिंह ने राजद और लालू प्रसाद को नसीहत देते हुए एक और पत्र लिखा था। उस पत्र में गणित का वह प्रोफेसर बिल्कुल दार्शनिक लग रहा था। उन्होंने कहा ‘राजनीति मतलब बुराई से लड़ना, धर्म मतलब अच्छाई करना। वर्तमान राजनीति में इतनी गिरावट आई है कि लोकतंत्र पर खतरा है। कुछ पार्टियां सीटों की खरीद-बिक्री करती हैं। महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण, डा लोहिया, बाबा साहेब और कर्पूरी ठाकुर ने कठिनाइयां सही लेकिन डगमगाये नहीं….।’  

पहले से भी थे नाराज
रघुवंश सिंह की नाराजगी कोई नई नहीं थी। लेकिन पहले वह पार्टी की व्यवस्था से नाराज थे। बाद में लालू प्रसाद से। पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर जगदानंद सिंह को बैठाया तो कार्यालय की व्यवस्था से रघुवंश बाबू नाराज हो गये। उन्होंने सलाह दी कि राजद कार्यालय कोई सरकारी दफ्तर नहीं है कि इसमें ताला लगाकर रखा जाए। गांव से गरीब कार्यकर्ता आते हैं, नेता से मिलने। उनके लिए बैठने की जगह है पार्टी कार्यालय। लेकिन जब उनकी बात नहीं सुनी गई तो उन्होंने पार्टी कार्यालय जाना ही छोड़ दिया। यहां तक कि प्रेस वार्ता भी वह अपने आवास पर ही बुलाने लगे। 

बाद में जब रामा सिंह को पार्टी में लाने की कवायद शुरू हुई तो उनकी नाराजगी लालू प्रसाद से भी हो गई। पार्टी ने रमा सिंह को शामिल करने की कोई घोषणा नहीं की लेकिन जब रामा सिंह ने खुद ही तारीख तय कर घोषित कर दी तो पटना एम्स में भर्ती रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद से मनाने का सिलसिला चलता रहा लेकिन अब तो वह मौका भी हाथ में नहीं रहा। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *