Patna: रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) ने इस्तीफा देकर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) से अपना रास्ता जब अलग करने का फैसला कर लिया है तो ऐसे में दोनों नेताओं की अतीत में झांकना भी जरूरी हो जाता है। दोनों शुरू से एक ही विचारधारा की राजनीति करते आ रहे हैं। दोनों लोकदल में रहते हुए कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur ) के बेहद करीबियों में शामिल थे। जब कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ तो रघुवंश ने लालू को आगे बढ़ाने में काफी मदद की। 1988 में नेता प्रतिपक्ष बनने में भी खुलकर साथ दिया। बाद में जब जनता दल बना तो भी रघुवंश ने लालू का साथ नहीं छोड़ा। भरोसे का रिश्ता तब और मजबूत हुआ जब 1997 में लालू ने जनता दल से अलग हटकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बनाया। रघुवंश उसके संस्थापक सदस्यों में से थे। यहां तक कि पार्टी का संविधान भी लालू ने उनकी सहमति से ही फाइनल किया था।
सवर्ण आरक्षण पर मनभेद भी हुआ था
रघुवंश ठेठ गंवई अंदाज में हमेशा लालू के मन की भाषा ही बोलते आए हैं। माना जाता था कि लालू जो सोचते हैं, वहीं रघुवंश बोलते हैं। करीब पांच दशकों की राजनीति में सिर्फ एक बार को छोड़कर दोनों की विचारधारा में कभी मतभेद नहीं दिखा। करीब दो साल पहले जब केंद्र ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की थी तो राजद ने उसका विरोध किया था। राज्यसभा में राजद सांसद मनोज झा ने झुनझुना बजाकर प्रस्ताव का विरोध किया था, जो रघुवंश को रास नहीं आया। लालू तब जेल में थे। रघुवंश ने मीडिया में अपनी व्यथा साझा करते हुए राजद को रास्ते पर लाने की कोशिश की थी। किंतु तब उनकी नहीं सुनी गई थी। हालांकि, बाद में राजद ने इस मुद्दे पर मौन साध लिया।