बिहार के पिछडऩे की खबर सामने आते ही, विशेष दर्जा दिलाने का राग जापने लगती हैं नीतीश सरकार

बिहार के पिछडऩे की खबर सामने आते ही, विशेष दर्जा दिलाने का राग जापने लगती हैं नीतीश सरकार

पटना: जब- जब किसी रिपोर्ट में बिहार के पिछडऩे की खबर सामने आती हैं, तब- तब नीतीश सरकार बिहार को विशेष दर्जा दिलाने का राग जापने लगती हैं। एक बार फिर से नीतीश सरकार ऐसा ही करते नज़र आ रही हैं।

दरअसल नीति आयोग की रिपोर्ट में सतत विकास लक्ष्य हासिल करने में बिहार के पिछडऩे की खबर सुनते ही जदयू (JDU) ने फिर जोरदार तरीके से राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग उठाई है। जदयू ने नीति आयोग की रिपोर्ट को ही इसका आधार बनाया है। जदयू की इस मांग ने बिहार की सियासत गरमा गई है। जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी के बाद संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी शनिवार को ट्वीट के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिहार के साथ इंसाफ करने का आग्रह किया है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने भी जदयू की मांग का समर्थन किया है। कहा है कि बिहार को विशेष दर्जा अब नहीं तो कभी नहीं। हालांकि राजद एवं कांग्रेस ने खिल्ली उड़ाई है। सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार बिहार को विशेष दर्जा क्‍यों मिलना चाहिए?

देश के आदिवासी बहुल इलाके, सीमावर्त्‍ती और पर्वतीय दुर्गम इलाके वाले राज्‍य के साथ बेहद गरीब और पिछले राज्‍यों को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया जाता है। वर्तमान में 11 राज्‍यों- असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्‍तराखंड, हिमाचलप्रदेश, सिक्किम और जम्‍मू-कश्‍मीर को विशेष दर्जा हासिल है। बिहार में गरीबी और विभाजन के बाद झारखंड में सारे प्राकृतिक संसाधन चले जाने को आधार बनाकर 2010 से ही सीएम नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू बिहार के लिए विशेष दर्जा की मांग करते रहे हैं।

किसी भी राज्‍य को विशेष दर्जा देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। राज्‍य की सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और उपलब्‍ध प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर विशेष दर्जा दिया जाता है। केंद्र अपने विवेक, मांग और जरूरत के अनुसार किसी भी राज्‍य को विशेष दर्जा दिए जाने का फैसला करता है। देश में सबसे पहले 1969 में पांचवें वित्‍त आयोग की सिफारिश पर केंद्र ने तीन राज्‍यों असम, नागालैंड और जम्‍मू-कश्‍मीर को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया था। इसके बाद सात अन्‍य राज्‍यों को विशेष दर्जा मिला। 2011 में उत्‍तराखंड को विशेष दर्जा दिया गया है। आगे पढि़ए राज्‍य को विशेष दर्जा मिलने पर क्‍या लाभ मिलता है।

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि कम संसाधनों के बावजूद नीतीश कुमार ने राज्य की बदतर कानून व्यवस्था और बेहाल शिक्षा महकमे को दुरुस्त करने में ताकत लगा दी है। आधारभूत संरचना को ठीक करने के लिए विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत है। डबल इंजन सरकार में विशेष दर्जा नहीं मिला तो कभी नहीं मिलेगा।

बिहार विभाजन के उपरांत प्राकृतिक संपदाओं का अभाव हो गया है। बिहारवासियों पर प्राकृतिक आपदाओं का लगातार प्रहार होता रहा है। इसके बावजूद नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार अपने कुशल प्रबंधन से राज्य में विकास की गति तेज करने में लगी है। उन्होंने दूसरे ट्वीट में लिखा है कि वर्तमान दर पर अन्य राज्यों की बराबरी संभव नहीं है। अत: निवेदन है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने पर विचार करें।

किसी भी राज्‍य को विशेष दर्जा मिलने के बाद केंद्र सरकार 90 फीसदी अनुदान के रूप में फंड देती है। शेष 10 फीसदी रकम पर कोई ब्‍याज नहीं लगता है। बिहार को वर्तमान में 30 फीसदी राशि अनुदान के रुप में मिलता है, शेष 70 फीसदी केंद्र का कर्ज होता है। हर साल केंद्र सरकार अपने प्‍लान बजट का 30 फीसदी रकम विशेष दर्जा प्राप्‍त राज्‍यों को देती है। इसके अलावा ऐसे राज्‍यों को इनकम टैक्‍स, एक्‍साइज और कस्‍टम में भी छूट मिलती है।

बिहार एक कृषि प्रधान राज्‍य है। यहां की 90 फीसदी आबादी कृषि कार्य कर जीवकोपार्जन करती है। बिहार में एक ही समय बाढ़ और सूखा की आपदा लोग झेलते हैं। हर वर्ष आनेवाले प्राकृतिक आपदा बाढ़ और सूखा के कारण यह देश के सबसे गरीब राज्‍यों में से एक है। जनसंख्‍या के लिहाज से उत्‍तरप्रदेश के बाद बिहार देश का दूसरा बड़ा राज्‍य है। यहां की बड़ी जनसंख्‍या भूमिहीन है। साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्‍य बनने के बाद यहां प्राकृतिक संसाधन नहीं के बराबर है।

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