Desk: बिहार में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व में एनडीए की सरकार (NDA Government) चल तो रही है, लेकिन फिलहाल वह मजबूती नहीं दिख रही है जो बीते वर्षों में रही है. चुनाव नतीजों में बहुमत और अल्पमत के बीच बहुत अधिक सीटों का अंतर नहीं होने से विधायकों के कभी भी पाला बदलने के खतरे के बीच चल रही सरकार को लेकर हर वक्त संशय बरकरार है. बिहार एनडीए की राजनीति में जेडीयू (JDU) का बीजेपी (BJP) के सामने ‘छोटे भाई’ की भूमिका में रहना भी पार्टी व इसके नेताओं के लिए मुश्किल स्थितियां पैदा कर रही हैं. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार के सामने सरकार व पार्टी स्तर पर दोहरी चुनौती है.
सीएम नीतीश कुमार के सामने सबसे पहली चुनौती सरकार पर नियंत्रण का है. दरअसल सरकार पर नियंत्रण का मतलब है कि नीतीश कुमार को जब मंत्रिमंडल का विस्तार करना होगा तो जेडीयू के ज्यादा विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करना. दरअसल इस बार जेडीयू के विधायकों की संख्या कम (43) है और अगर इसी अनुपात में मंत्रिमंडल का विस्तार होता है तो मुश्किल यह भी होगी कि भाजपा के मंत्री ज्यादा होंगे और जेडीयू के कम. ऐसे में सरकार के ऊपर नीतीश कुमार का नियंत्रण कैसे होगा यह देखना दिलचस्प रहेगा.
मजबूत विपक्ष से नीतीश का सामना
दूसरी बड़ी चुनौती होगी कि मजबूत विपक्ष का सामना करना. दरअसल पहली बार ऐसा हो रहा है बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार के सामने एक मजबूत विपक्ष भी है. 243 सदस्यीय विधानसभा में 115 विधायक नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ हैं. सबसे बड़ी बात यह भी है कि ऐसा लग रहा है कि अगर विपक्ष मजबूती के साथ सरकार के फैसलों पर सवाल उठाए, या सरकार की कमियों को दिखाए या जनता तक अपनी बात पहुंचा पाए तो आगे के लिए नीतीश कुमार इस गठबंधन के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. क्योंकि मजबूत विपक्ष का सामना नीतीश कुमार कैसे करेंगे यह भी देखना बेहद महत्वपूर्ण होगा. विशेष बात यह कि इसी वर्ष सरकार का पहला बजट भी आने वाला है. इस बजट में विपक्ष किन मुद्दों पर सरकार को खेलता है और सरकार से बचने के लिए क्या कुछ करती है यह भी देखना होगा.
सहयोगियों से भी बना हुआ है खतरा
सीएम नीतीश के सामने एक बड़ी चुनौती अपने दो सहयोगियों, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी व विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को साथ रखने की भी रहेगी. हालांकि मांझी बार-बार यही कह रहे हैं कि वह एनडीए सरकार के साथ खड़े हैं, लेकिन बीते दिनों वे तेजस्वी को अपने पुत्र समान बताकर अपने प्रेम (सियासी) का इजहार भी कर चुके हैं. ऐसे भी मांझी के बारे में यह बात प्रचलन में है कि उनका मन कब डोल जाए कोई नहीं जानता है. इसी तरह मुकेश सहनी भी राबड़ी देवी के करीबी माने जाते रहे हैं. हालांकि बीते विधानमंडल सत्र में इन दोनों के बीच काफी तीखी बहस भी हुई थी, बावजूद इसके बिहार की सियासत में कब क्या हो जाए कोई नहीं कह सकता. जाहिर तौर पर अगर इन दोनों साथ रखे रहना नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती होगी.
सुशासन की छवि बरकरार रखने की चुनौती
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती है सुशासन की छवि को वापस लाना होगी. दरअसल नीतीश कुमार को लोग सुशासन बाबू भी कहते हैं. लेकिन हाल के दिनों में बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब है. लूट और हत्याओं का सिलसिला बदस्तूर है. ऐसे में नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2005 से 2010 की सरकार वाली छवि को पुनर्स्थापित करना है. इसके साथ ही सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार के सुशासन वाली छवि नहीं रह गई है? दरअसल इस बार भी उनके सत्ता में वापसी का कारण यह माना जा रहा है कि उनकी सुशासन बाबू की छवि बरकरार है और इस कारण नीतीश कुमार पर जनता का भरोसा बना हुआ है. जाहिर है अगर यह छवि टूटती है तो स्वाभाविक तौर पर यह नीतीश कुमार की राजनीति के लिए बड़ा ही सेटबैक साबित होगा. ऐसे में इस छवि को बरकरार रख पाना कठिन चुनौती है.
शराबबंदी के मुद्दे पर विपक्ष से होता रहेगा सामना
नीतीश कुमार के सामने एक बड़ी चुनौती कांग्रेस और विपक्ष के द्वारा लगातार शराबबंदी कानून को वापस लिए जाने की मांग को लेकर है. हालांकि बिहार में अभी भी शराबबंदी कानून लागू है, लेकिन नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में शराब पीने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में क्या यह माना जाए कि क्या शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार कुछ और सख्त फैसले लेंगे? उनके सामने यह चुनौती भी होगी कि जो विपक्ष आरोप लगा रहा है कि युवा शराब तस्कर बन रहे हैं. गली मोहल्लों में खुलेआम शराब बिक्री हो रही है. उस क्या वह उस पर रोकथाम कर पाएंगे? क्या कानून का शिकंजा ऐसे तत्वों पर कसेगा?
शराबबंदी पर मांझी के स्टैंड से नीतीश को परेशानी!
इस मुद्दे पर पर उनकी राह में बड़ी अड़चन उनके सहयोगी पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी होंगे जो लगातार शराबबंदी के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. शासन में आने के बाद भी उन्होंने कई बार शराबबंदी को लेकर अपनी बात सामने रखी है और बेगुनाहों को जेल से छोड़ने की अपील की है. ऐसे में नीतीश कुमार के सामने न सिर्फ विपक्ष बल्कि अपने सहयोगियों को साधने की भी चुनौती होगी.
जेडीयू का दूसरे प्रदेशों में विस्तार करने की चुनौती
जेडीयू को विस्तार देना भी नीतीश कुमार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. प्रशांत किशोर के जेडीयू से आउट होने के बाद अब आरसीपी सिंह को पार्टी संभालने की जिम्मेदारी दी गई है. वे जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए हैं तो स्वभाविक तौर पर नीतीश कुमार के मन में यह है कि जेडीयू का और विस्तार हो. लेकिन जैसे अरुणाचल प्रदेश में जनता दल यू के अधिकतर विधायक टूटकर बीजेपी में मिल गए और और जेडीयू के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया, ऐसे में नीतीश कुमार को अपनी पार्टी बचाना बड़ा ही मुश्किल भरा सबक है. हालांकि नीतीश कुमार ने कहा है कि उनकी यह कोशिश होगी कि बिहार के बाहर जेडीयू का विस्तार हो और वह इसी सिलसिले में वह बंगाल विधानसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं.