सरकारी बैठकों में बंद हैं प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल, लेकिन अफसरों ने अपने ही बनाए नियम की उड़ाई धज्जियां

सरकारी बैठकों में बंद हैं प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल, लेकिन अफसरों ने अपने ही बनाए नियम की उड़ाई धज्जियां

Patna: बिहार में सरकारी बैठकों में प्लास्टिक बोतलबंद पानी के इस्तेमाल पर रोक है। लेकिन सरकार के अफसरों ने अपने ही बनाए नियम की धज्जियां उस कार्यक्रम में उड़ा दीं, जिसमें CM नीतीश कुमार खुद मौजूद थे। इस बैठक का आयोजन पुलिस हेडक्वार्टर पटेल भवन में हुआ था। बैठक में DGP एसके सिंघल, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार सहित कई बड़े अफसर मौजूद थे। सभी के आगे बोतलबंद पानी परोस दिया गया।

विवेक कुमार सिंह जब पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रधान सचिव थे, तब 2 दिसंबर 2014 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक को लिखे पत्र में निर्देश दिया था कि पर्यावरण एवं वन विभाग के विभागीय बैठकों में PET बोतल का इस्तेमाल नहीं किया जाए। बाद में तत्कालीन मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने 19 जनवरी 2015 को यही पत्र सभी विभागों के प्रधान सचिव को लिखा। उसमें बताया गया था कि प्लास्टिक बोतलबंद पानी के इस्तेमाल से क्या-क्या हानियां हैं और इससे पर्यावरण को कितना खतरा है। सभी विभागों को कहा गया था कि सरकारी बैठकों या कार्यक्रमों में प्लास्टिक बोतलबंद पानी नहीं दिया जाए।

प्लास्टिक बोतलबंद पानी के इस्तेमाल से होने वाली ये हानियां बतायी गई थीं
तत्कालीन मुख्य सचिव के पत्र में बताया गया था कि इन बोतलों का उपयोग मनुष्य के लिए आर्थिक, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण कारणों से निश्चय ही हानिकारक है। PET बोतल के निर्माण में बिस्फोनेल ए (BPA) नामक रसायन का प्रयोग होता है, जो मानव ग्रंथियों के लिए हानिकारक है।

PET बोतल के ढक्कन रिसाइकिल नहीं हो पाते हैं और इसे जानवरों के द्वारा खाए जाने से, उनकी जान को खतरा रहता है। प्रत्येक वर्ष, प्लास्टिक खाने के कारण 10 लाख से ज्यादा पशु, पक्षी एवं मछलियों की मृत्यु होती है। एक PET बोतल के निर्माण में 6 KG CO2 का उत्सर्जन वायुमंडल में होता है। इसके अतिरिक्त एक लीटर PET बोतल के निर्माण में करीब पांच लीटर पानी का अलग से प्रयोग होता है। विश्व के कुल तेल खपत का लगभग 6 प्रतिशत सिर्फ प्लास्टिक निर्माण में इस्तेमाल होता है। कुल कचरे का 4-5 प्रतिशत भाग प्लास्टिक का होता है । यही कचरा इकट्ठा होकर नालियों, गटरों, सीवेज और डिस्पोजल पाईपों में अवरोध पैदा करता है। PET बोतल का उपयोग मनुष्य, समाज एवं पर्यावरण, तीनों के लिए ही हानिकारक है। एक PET बोतल का वजन औसतन 30 ग्राम होता है। अगर 100 व्यक्तियों की बैठक में PET बोतल का इस्तेमाल किया गया तो केवल PET बोतल मात्र से 18 किलो CO2 का उत्सर्जन होगा।

मकसद लोगों में मैसेज देना भी था
प्लास्टिक के बोतलों में भरा पानी सेहत के लिए तो हानिकारक है ही, इस्तेमाल के बाद खाली बोतलों से पर्यावरण को भी खतरा है। इसी को देखते हुए बिहार सरकार ने सरकारी आयोजनों में प्लास्टिक के बोतलों में पानी देने पर रोक लगाई थी। मकसद यह भी था कि आम लोगों को भी इससे सीख मिलेगी और पर्यावरण की सुरक्षा का बड़ा मैसेज जाएगा। लेकिन अब सरकार अपना ही आदेश भूल रही है।

फैशन बन गया है प्लास्टिक बोतल पानी : डॉ. एके घोष
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन डॉ. एके घोष कहते हैं, सरकार की ओर से यह निर्देश है कि सरकारी बैठकों में प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल नहीं किया जाए। लेकिन इसके लिए किसी तरह के दंड का कोई प्रावधान नहीं है। हमारे यहां बोर्ड की बैठकों में ग्लास और जग से पानी दिया जाता है। अगर आपके यहां का ग्राउंड वाटर जांच में ठीक पाया गया है तो पानी को किसी तरह के आरओ से फिल्टर करके पीने की जरूरत ही नहीं है। प्लास्टिक बोतल वाले पानी का इस्तेमाल आजकल फैशन बन गया है। इससे सेहत और पर्यावरण दोनों को नुकसान है।

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