Patna: भागलपुर में जन्मे अशोक कुमार भारतीय सिनेमा जगत के महान सिने कलाकार ही नहीं एक सिद्धस्त चित्रकार व होमियोपैथ के चिकित्सक भी थे। उनकी चचेरी भतीजी व तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रोफेसर डॉ. रत्ना मुखर्जी ने इसकी जानकारी दी।
वे बताती हैं कि अशोक कुमार ने दादा-दादी का ऐसा उम्दा आदमकद तैल-चित्र बनाया था, जिसे देख कर लगता था कि मानो वे दोनों अब बोल उठेंगे। उस पेंटिंग को उन्होंने मुंबई के चेंबुर स्थित मकान के बैठकखाने में सामने की दीवार पर लगा रखा था। होमियोपैथ के चिकित्सक के रूप में उनकी ख्याति दूर दूर तक फैल गई थी। चरित्र अभिनेता डेविड का उन्होंने लंबे समय तक इलाज किया था। मुंबई के अलावा नासिक, पूणे, शोलापुर आदि शहरों से भी उनसे इलाज कराने मरीज आते थे। पर कभी किसी से काई फीस-वीस नहीं लेते थे।
वह बताती हैं कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजे जाने वाले आला दर्जे के फिल्म अभिनेता दादा मुनि नेक दिल इंसान थे। उन्होंने अपने दोनों ड्राइवरों के अवकाश ग्रहण करने के बाद हसमत अली को आजीवन पेंशन देते रहे और खुर्शीद को मुंबई में चार कमरों वाला फ्लैट खरीद दिया था। वह बताती हैं कि उनके पिता अरूण कुमार मुखर्जी बॉलीवुड में संगीतकार थे। दिल का दौरा पडऩे से उनके आकस्मिक निधन के बाद चाचाजी ने इनके परिवार को संभालने में हर संभव सहयोग किया। जून, 1964 में दीदी की शादी में व्यस्तता के कारण चाचाजी तो नहीं आ पाए, लेकिन उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रिया सिनेमा हॉल के मालिक वेणु दा को भेज दिया। वेणु दा दो-तीन दिन पहले ही इनके कोलकाता स्थित घर आ गए और मां से बोले मुझे अशोक ने भेजा है। वे दीदी की ससुराल विदाई तक डटे रहे और विवाह का सारा खर्च उन्होंने स्वयं वहन किया था।
रत्ना मुखर्जी कहती हैं, इसे दादा मुनि की सादगी कह लीजिए या एक अद्भुत आदत वे अपने बेड पर चादर व पिलो-कवर नहीं लगाते थे। त्योहार आदि अवसरों पर यदि चाची जी चादर व कवर लगा भी देतीं तो वे बेड पर जाते ही उन्हें हटा देते थे। भागलपुर के मसाकचक में रहने वाले अशोक कुमार के चचेरे साले शोमनाथ बनर्जी बताते हैं कि वह शोभा बनर्जी से पहली बार यहीं मिले थे। बाद में वे दोनों वैवाहिक सूत्र में बंध गए। वह कहते हैं 1977 में जब वे जेठी मां सुरोमा देवी (अशोक कुमार की सास) के साथ चेंबुर स्थित दादा मुनि के मकान पर गए थे उन्होंने देखा कि भोजन के बाद वे उबले हुए कद्दू के चंद छोटे टुकड़े अवश्य लेते थे। वे कहते थे कि कद्दू खाने से लीवर दुरुस्त रहता है। छुटपन में वे मां के साथ अक्सर अपने ननिहाल भागलपुर आते थे। वे आदमपुर मोहल्ला स्थित मामा शानू बनर्जी के घर रुकते थे। वे यहां का रेशमी कुर्ता बड़े शौक से पहनते थे।