Patna: जगदंब अहीं अवलंब हमर…, मिथिला के धिया सिया जगत जननी भेली… तू नहि बिसरिहें गे माय…, बाबा बैद्यकनाथ कहाबी… और चलू चलू बहिना हकार पूरै ले… सरीखे अनगिनत कालजयी रचनाओं की रचना करने वाले मैथिली साहित्य जगत में मैथिलीपुत्र प्रदीप नाम से सुविख्यात शिक्षक-कवि प्रभु नारायण झा का शनिवार सुबह लहेरियासराय स्थित आवास स्वयंप्रभा निकुंज में हो गया. वे 85 वर्ष के थे. उनका जन्म वर्ष 1936 में दरभंगा जिला के तारडीह प्रखंड के कथवार गांव में हुआ था. उनके निधन पर शोक संवेदनाओं का तांता लगा गया.
उन्होंने लगभग 2 दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें “नामपट” उपन्यास को छोड़ प्रायः सभी पद्य की रहीं. 1955 से अब तक प्रकाशित उनकी पुस्तकें हैं- गुलाबक बहार, अमोल बोल, टुन्नीदाइक सोहाग, गीत प्रदीप, उगल नव चान, कुहुकल कोइलिया, क्रांति गीत, नागेश्वर भक्तिमाला, अष्टदल, जगदंब अहीं अवलंब हमर, एक घाट तीन बाट, स्वयंप्रभा, श्रीराम हृदय, श्री कामख्या परिभ्रमण, साधना प्रार्थना, भक्तिगीत प्रदीप, आरती संग्रह, श्रीमद् भगवद गीता, द्वादश स्तोत्र, अन्हारसं इजोतमे आउ, श्रीराघवलीला महाकथा, श्रीनटवरलीला महाकाव्य, श्रीत्रिशूली आरती संग्रह, कामाख्या परिभ्रमण आ जीवनगीत, नामपट, श्री सीता अवतरण महाकाव्य. वे गीतकार के रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध थे. हालांकि उन्होंने अनुवाद कार्य भी किए और “त्रिशूलिनी” नामक भक्ति रचना प्रधान मैथिली पत्रिका का संपादन भी किया.
मैथिलीपुत्र प्रदीप के प्रति शोक-संवेदना व्यक्त करने वाले अन्य लोगों में प्रो उदय शंकर मिश्र, कवि चंद्रेश, फूलचंद्र प्रवीण, हरिश्चंद्र हरित, डॉ महेंद्र नारायण राम, गायक दीपक कुमार झा, कुंजबिहारी मिश्र, रामबाबू झा, केदारनाथ कुमर, माधव राय, महात्मा गांधी शिक्षक संस्थान के चेयरमैन हीरा कुमार झा, डॉ. गणेश कांत झा, डॉ. उदय कांत मिश्र, विनोद कुमार झा, प्रो विजय कांत झा, प्रो चन्द्र मोहन झा पड़वा, प्रो चन्द्र शेखर झा बूढा भाई, आशीष चौधरी एवं चंदन सिंह आदि शामिल हैं.
विधायक संजय सरावगी, मेयर वैजयंती देवी खेड़िया, पूर्व विधान पार्षद पो. विनोद कुमार चौधरी, वयोवृद्ध साहित्यकार पं चंद्रनाथ मिश्र ‘’अमर’’ सहित सैकड़ों लोगों ने कहा कि ऋषि परंपरा के वे एक अद्भुत कवि थे. जिन्होंने अपनी लेखनी की रोशनी से मैथिली साहित्य जगत को जीवन पर्यंत प्रकाशवान बनाए रखा. विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू एवं सचिव प्रो जीव कांत मिश्र ने उनके आवास पर पहुंचकर संस्थान की ओर से दिवंगत आत्मा को श्रद्धा-सुमन अर्पित किया.
डॉ बैद्यनाथ बैजू ने कहा कि उनके निधन से मिथिला-मैथिली के विकास के लिए सतत चिंतनशील रहने वाला हितचिंतक आज भले हमसे जुदा हो गया, लेकिन अपनी लेखनी से मिथिला-मैथिली के मान-सम्मान के नित नए प्रतिमान गढ़ने वाले मैथिली पुत्र प्रदीप अपनी रचनाओं में हमेशा जीवंत बने रहेंगे. मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि वे आधुनिक मैथिली भाषा-साहित्य के संस्थापकों में से एक थे.
वरिष्ठ कवि मणिकांत झा ने कहा कि वे एक ऐसे रस-सिद्ध कवि थे, जिन्होंने ‘’सादा जीवन-उच्च विचार’’ की जीवन पद्धति का अनुपालन करते हुए पत्रकारिता, साहित्य एवं समाज सेवा की छांव तले जीवन पर्यंत मैथिली साहित्याकाश को अनवरत ऊंचाई प्रदान की. प्रो जीव कांत मिश्र ने कहा कि उनके निधन से मैथिली साहित्य जगत का अमूल्य हस्ताक्षर आज हमसे बिछड़ गया.संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ बुचरू पासवान ने कहा कि मैथिलीपुत्र प्रदीप के रूप में अपनी लेखनी से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्रांति का बिगुल फूंकने वाला रचनाकार हमसे जुदा हो गया.
मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि उनके निधन से मिथिला-मैथिली के विकास के प्रति सदैव चिंतनशील रहने वाला एक समर्पित अभियानी हमसे सदा के लिए जुदा हो गया. साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत व साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विचार मंच “ऋचालोक” के महासचिव डा. अमलेंदु शेखर पाठक ने कहा कि उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से जहां एक ओर मैथिली भाषा-साहित्य को विस्तार दिया वहीं मैथिली आंदोलन में भी उत्साह फूंकते रहे.