जानें मधुबनी के अविनाश की मिथिला पेंटिंग ‘नटराज’ आजकल किस वजह से है चर्चा में, कितनी लगी है इसकी बोली

जानें मधुबनी के अविनाश की मिथिला पेंटिंग ‘नटराज’ आजकल किस वजह से है चर्चा में, कितनी लगी है इसकी बोली

Patna: पारंपरिक विषयों को लेकर की जाने वाली विश्व प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग में समय के साथ आधुनिक विषयों, संदर्भों का समावेश भी होता चला गया, जिसने इसकी व्यापकता और पूरी दुनिया में इसकी स्वीकार्यता को पंख ही लगाए हैं. समकालीन स्वरूप में इन कलाकृतियों को हाथों-हाथ लिया जा रहा है. इसके कलाकार भी इस प्राचीन कला को बुलंदियों तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं. इन्हीं में एक नाम है अविनाश कर्ण का. मधुबनी जिला अंतर्गत मिथिला पेंटिंग के लिए विख्यात रांटी गांव निवासी इस युवा कलाकार की एक कलाकृति ‘नटराज’ इन दिनों सुर्खियों में आ गई है.

2.48 लाख रुपये की की बोली लगाई गई

कलाकृतियों की एक नीलामी में इस पेंटिंग के लिए 2.48 लाख रुपये की की बोली लगाई गई है. इस तरह सैफरन आर्ट की स्टोरी लिमिटेड के नो रिजर्व ऑक्शन में अविनाश की पेंटिंग ‘नटराज’ ने धूम मचा दी. अगस्त-2020 की फोक एंड ट्राइबल आर्ट कैटगरी की नीलामी का यह परिणाम आते ही कलाप्रेमियों में इस पर चर्चा ने जोर पकड़ लिया है.

पेंटिंग ग्राहकों का इस कला की और रुझान बढ़ा

अभी दो माह पूर्व ही मिथिला पेंटिंग की दिवंगत कलाकार पद्मश्री सीता देवी की एक पेंटिंग ‘कदम्ब का पेड़’ चार लाख 36 हजार रुपये में बिकी थी. इसके साथ ही पिछले छह वर्षों में पहली बार मिथिला पेंटिंग ने सबसे कीमती बिकने वाली लोक कला शैलियों में प्रथम पायदान हासिल कर किया है. इससे पहले इस स्थान पर गोंड शैली का वर्चस्व रहा है.

छह सालों से समकालीन विषयों पर चला रहे कूची

वैसे तो अविनाश कई वर्षों से मिथिला पेंटिंग बनाते आ रहे हैं. लेकिन पिछले छह सालों से वे इसे समकालीन स्वरूप देने में जुटे हैं. बीएचयू से फाइन आर्ट में स्नातक अविनाश नए आइडिया के साथ इस कला के क्षेत्र में काम कर रहे हैं.

स्वीटजरलैंड में कला महोत्सव में लिया हिस्सा

अविनाश को पिछले साल अप्रैल में स्वीटजरलैंड में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कला महोत्सव में आमंत्रित किया गया था. वहां उन्होंने लोक कलाओं के साथ हुए दुव्र्यवहार पर दुनिया भर के कला प्रेमियों के बीच प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखी थी.

मिथिला पेंटिंग को समकालीन रूप दे रहे

अविनाश बताते हैं कि उन्होंने पाया कि विशुद्ध रूप से पारंपरिक विषयों पर की गई पेंटिंग को फोक आर्ट का ठप्पा देकर उसे हस्तकला की श्रेणी में रख दिया जाता है, जिनकी ऊंची कीमत नहीं लग पाती. वहीं अगर इनमें समकालीन पुट दे दिया जाए तो यह खरीदारों को आकर्षित भी करता है और कीमत भी अधिक मिलती है. कलाप्रेमियों तक अपनी अधिक पहुंच बनाने के लिए अविनाश समकालीन विषयों से जोड़ पेंटिंग्स बनाने लगे. इस तरह अब इनकी कलाकृतियां समकालीन दीर्घाओं में प्रदर्शीत होने लगीं हैं.

बनारस छोड़ लौटे मधुबनी

अविनाश बनारस में अपना स्टूडियो चलाते थे. लेकिन इन्होंने उसे बंद कर दिया और इस साल जुलाई में मधुबनी आ गए. कहते हैं कि वहां थोक में आर्डर मिलने पर बनाने वाले कलाकारों की कमी महसूस होती थी. ऐसे में सोचा कि क्यों नहीं अपने गृह जिले के कलाकारों के साथ मिलकर काम किया जाए, ताकि उन्हेंं भी आगे बढऩे का मौका मिल सके. अब ये अपने मिशन में आगे बढ़ रहे हैं.

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