बिहार के इन शिक्षकों ने बदल दिया बच्चों का भविष्य एवं समाज की तस्वीर

बिहार के इन शिक्षकों ने बदल दिया बच्चों का भविष्य एवं समाज की तस्वीर

Patna: गुरु की महिमा अपरंपार है। शिक्षक ही हमें आत्मज्ञान देते हैं। उनकी शिक्षा की बदौलत ही हम भले-बुरे की पहचान कर पाते हैं। उनकी शिक्षा हमें समाज में स्वावलंबी और सच्चरित्र बनाती है। उनके आदर्श हमें देश व समाज के प्रति जिम्मेदारियो को निभाने को प्रेरित करती है। माता-पिता और शिक्षक के प्रति आदर और श्रद्धाभाव भारतीय समाज की पहचान है। प्रस्तुत है बिहार के ऐसे ही कुछ शिक्षकों की कहानी, जो समाज को अपने व्यक्तित्व-कृतित्व से प्रेरित-प्रोत्साहित कर रहे है अथवा प्रेरित किया है। 

एआरडीडीई बनने के बाद भी मास्टर साहब ही कहलाते रहे वीरेन्द्र कुमार 
मुजफ्फरपुर। शिक्षक से बीईओ, फिर क्षेत्र अधिकारी से लेकर एआरडीडीई तक के पद पर कार्यरत वीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव इतने वर्षों बाद आज भी मास्टर साहब ही कहलाते हैं। शिक्षक के बाद वह भले ही अधिकारी बने, लेकिन उनकी पहचान एक गुरु के रूप में ही रही। यही वजह है कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने पहले स्कूल के पास ही अपना निवास स्थान बनाया और वहां बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। मूलरूप से छपरा के रहने वाले श्रीवास्तव कहते हैं कि सबसे पहले मैं शिक्षक था। ऐसे में लोगों ने मास्टर साहब ही नाम रख दिया और यही मेरी उपलब्धि है। 

छात्रों को साइकिल से परीक्षा दिलाने जाते थे मुनीलाल 
भागलपुर। 1956 में स्थापित बरारी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक मुनीलाल बच्चों को अपनी साइकिल पर बिठाकर दूर परीक्षा दिलाने, खेल प्रतियोगिता में भाग दिलाने ले जाते थे। उनके छात्र आईएएस, आईपीएस, इंजीनियर और डॉक्टर हैं। आईएएस अधिकारी सुनील वर्णवाल को तो आज भी यह बात याद है कि 1982 में जब वह चौथी में थे तो उनकी छात्रवृत्ति की परीक्षा दिलाने के लिए वह साइकिल से लेकर गए थे। मुनीलाल ने कहा कि बच्चों को सफल बनाना ही उनका उद्देश्य था। इसी कारण ऐसा करते थे। उनके लिये सभी बच्चे समान थे। 

किसान मजदूर हाईस्कूल को बनाया अव्वल मोहन प्रसाद विद्यार्थी 
रघुनाथुर (सीवान)। शिक्षकों के मार्गदर्शक मोहन प्रसाद विद्यार्थी 82 साल की उम्र में भी अपने जज्बा को कम नहीं होने दिया। मिडिल स्कूल टारी में हेडमास्टर के पद पर रहते हुए उन्होंने गांव के लोगों के सहयोग से किसानों और मजदूरों के नाम पर किसान मजदूर हाईस्कूल टारी की स्थापना की। इसके लिए गांव के बड़े लोगों ने जमीन मुहैया कराया था। तब के स्थानीय विधायक रामानंद यादव से बात करके इसी स्वीकृति दिलवायी। इस स्कूल के पहले प्रधानाध्यापक रहे मोहन प्रसाद विद्यार्थी ने पढ़ाई और अनुशासन के बदौलत इस स्कूल को जिले में पहचान दिलायी। छात्र जीवन से ही चहुंमुखी प्रतिभा के धनी मोहन प्रसाद विद्यार्थी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के मुख्य परीक्षक व मुख्य फ्लाईंग स्क्वायड के संयोजक पद पर रहे मोहन बाबू को तत्कालीन शिक्षा मंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह ने सम्मानित किया था।

बच्चों को तकनीकी ज्ञान के साथ कलाकृतियों के निर्माण की दे रहे जानकारी शशिभूषण 
छपरा। शिक्षक सिर्फ पढ़ाने में ही नही बल्कि बच्चों को तकनीकी ज्ञान के साथ कलाकृतियों के निर्माण में भी दिलचस्पी दिखा रहे है। एकमा प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय टेसुआर के शिक्षक डॉ शशिभूषण शाही कोरोना संक्रमण काल में विद्यालय बंद होने के बाद भी आस पास के बच्चों को मिट्टी के खिलौने बनाने की कला सीखा रहे है। इसके पहले कबाड़ से जुगाड़,बाए हाथ से लिखने की कला आदि का भी प्रयोग बच्चों से करा चुके है। शिक्षक शशिभूषण शैक्षणिक जगत के अलावा बीएलओ, कोरोना वारियर्स आदि सरकारी गतिविधियों में भी बेहतर कार्य को लेकर राज्य स्तर पर पुरस्कृत हो चुके है। 

निशक्तता के बावजूद बैकुंठपुर के संतोष कुमार अध्यापन में व्यस्त 
बैकुंठपुर। बैकुंठपुर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय महारानी पनडूही टोला में पदस्थापित शिक्षक संतोष कुमार सिंह शारीरिक रूप से नि:शक्त रहने के बावजूद समर्पित होकर अध्यापन कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2011 में प्रखंड शिक्षक के पद पर नियोजित संतोष कुमार सिंह मूल रूप गोपालगंज सदर प्रखंड के काकड़कुंड गांव के निवासी हैं। श्री सिंह नौ वर्षों से शिक्षा सेवा से जुड़े हैं। पैर से नि:शक्त रहने के बावजूद ये प्रतिदिन समय पर विद्यालय पहुंचते हैं। सामाजिक शिक्षा इनके पठन-पाठन का विषय है। वर्ग एक से आठवीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। ये सुबह आठ बजे स्कूल पहुंचते हैं। 

उसके बाद क्लास लगने से पहले कुछ बच्चों को एकत्रित कर नि:शुल्क शिक्षा देते हैं। घर से इनकी स्कूल की दूरी 45 किलोमीटर है। लेकिन इससे इनका हौसला कम नहीं होता। उन्होंने बताया कि बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने में एक सुखद अनुभूति की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि किसी भी परिस्थिति में शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए। शिक्षक इमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तो प्रतिष्ठा और सम्मान दोनों मिलती है।  

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